31 मई को वसुधैव कुटुम्बकम् दिवस के रूप में मनाई जाए  मातोश्री अहिल्या बाई होल्कर जयन्ती 


                               
    31 मई 1725 को महाराष्ट्र की धरती पर हुआ। इस तरह भारतीय इतिहास में ऐतिहासिक क्षण के रूप में दर्ज हुआ, जब अहिल्या जी का जन्म हुआ। भारत ही नहीं, वरन विश्व के इतिहास में इतनी लोक कल्याणकारी महिला शासिका नहीं हुई। इन्होंने धर्म, वर्ग, जाति से परे राष्ट्र नीति के तहत शासन किया। और लोकमाता पुण्यश्लोक, लोकमाता, राजमाता के रूप में पूज्यनीय हो गई। इतनी बड़ी उपलब्धि शायद ही किसी को मिली हो, ना ही आगे किसी को मिलने की संभावना है। 
    कोरोना काल में 31 मई को घर में रहकर परिजन एक साथ मिलकर मातोश्री की लोक कल्याणकारी, पारिवारिक एकता, सामाजिक एकता एवं आध्यात्मिक शिक्षाओं पर चर्चा करें तथा उससे एक सुन्दर परिवार तथा समाज बनने की प्रेरणा ग्रहण करें। प्यार और सहकार से भरापूरा परिवार ही धरती का स्वर्ग है। हमारा विश्वास है कि 
वसुधैव कुटुम्बकम् की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। प्रत्येक बालक को बाल्यावस्था से ही विश्व एकता की शिक्षा मिलनी चाहिए।  
     अहिल्या बाई साधारण गड़रिया (धनगर) परिवार में जन्म लेकर न्यायप्रिय नारी शासिका बनी। अहिल्याबाई बचपन से ही अपनी सोच से लोगों को आश्चर्यचकित कर देती थी। इसी सोच के बल पर वे मालवा की रानी बनी और 28 वर्षों तक हर धर्म, वर्ग को लेकर लोक कल्याणकारी शासन कर एक अलग मिशाल कायम की। जो अन्य शासक एवं शासिका से सर्वोत्तम शासन प्रणाली थी। 
     जब महिलाओं को शिक्षा से दूर रखा जाता था इन्होंने महिलाओं के लिए शिक्षा के द्वार खोल दिये। विधवा महिलाओं को जब  समाज स्वीकार नही करता था उन्हें अपशकुन हीन भावना से देखता था तो  इन्होंने अपने प्रण से विधवा महिलाओं के लिए अपने दरबार के द्वार के  खोल दिये, और उन्हें भी सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिलाया।
    अहिल्याबाई की न्याय प्रणाली सब पर एक समान होती थी। वह बिना भेदभाव किये न्याय करती थी। राज्य का कोई आम हो या खास सबको एक समान न्याय देती थी। इसका एक उदाहरण उन्होंने अपने बेटे को मृत्युदंड की सजा सुनाई। प्रकरण यह था अनजाने में ही उनके बेटे से उनके रथ से गाय के एक बछड़े की मृत्यु हो जाती है न्याय मांगने के लिए गाय राजदरबार में जाती है। पूरा प्रकरण सुनने के बाद माता ने जैसे उनके बेटे से अनहोनी हुई थी वैसे ही रथ से अपने बेटे को कुचलने की सजा सुनाई। लेकिन जब सजा दी जा रही थी। गाय ने उनके बेटे को सजा न देने की प्रार्थना की। गाय बोली हे माँ जैसे मैं अपने बेटे के लिए तड़प रही हूं,वैसे आपको मैं तड़पता नही देख सकती। इस तरह  न्यायिक प्रणाली में उन्होंने अपने बेटे तक को भी नही छोड़ा। 
    मुगलों द्वारा जिन मंदिरों को नष्ट किया गया था इन्होंने फिर से उनका निर्माण एवं जीर्णोद्धार करवाया। अहिल्याबाई ने 12 हजार से अधिक मन्दिरों का निर्माण करवाया। जिनमें से काशी विश्वनाथ और सोमनाथ मंदिर मुख्य है और देश के 12 ज्योतिर्लिंगों का भी जीर्णोद्धार की करवाया। 
    किसानों के लिये सिंचाई की उत्तम व्यवस्था, अनेक कुएं, बावड़ियों, पक्की सड़के एवं लोक कल्याणकारी कार्य करवाये। अपने राज्यक्षेत्र में पुरूषों के साथ साथ महिलाओं को शिक्षित करने के लिए अनेक शिक्षालयों का भी निर्माण करवाया। अगर देश अहिल्या शासन प्रणाली को अपना लेता है तो भारत सही मायनों में विश्वगुरू बन सकता हैं। माँ अहिल्या के शासन प्रणाली तथा वसुधैव कुटुम्बकम् के व्यापक विचार से अगर देश चलता है तो देश मे कही धर्म, वर्ग, जाति के नाम पर घटनाएं नहीं होगी। देश सहित सारे विश्व में शांति, एकता, संमृद्धि और खुशहाली होगी।

लेखक -श्रवण पाल ‘अन्नू’ वाराणसी, उत्तर प्रदेश।

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