बौद्धिक होने का अर्थ है - वर्तमान में रहकर जीवन जीना!


वर्तमान में जीने वाला बौद्धिक कभी अपराध नहीं कर सकता
- प्रदीपजी पाल, लेखक 
    प्रकृति हमें कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। जैसे-पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं है। इस पाठ को जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में आत्मसात किया उसे असफलता से कभी डर नहीं लगा। ऐसे व्यक्ति अपनी हर असफलता के बाद विचलित हुए बगैर नए सिरे से सफलता पाने की कोशिश करते हंै। वे तब तक ऐसा करते रहते हंै जब तक सफलता उन्हें मिल नहीं जाती। इसी तरह फलों से लदे, मगर नीचे की ओर झुके पेड़ हमें सफलता और प्रसिद्धि मिलने या संपन्न होने के बावजूद विनम्र और सज्जन बने रहना सिखाते हंै। 
    प्रकृति ने हमें दो महत्त्वपूर्ण अनुदान दिए हैं- एक समय और दूसरा क्षमता। किंतु हमारे पास सीमित समय व क्षमता है। इसी समयावधि में हमें अपने निर्धारित कत्र्तव्यों के पालन के साथ जीवन के परम उद्देश्य की प्राप्ति भी करनी है। इसीलिए जीवन का प्रत्येक क्षण अनमोल है; क्योंकि समय के सदुपयोग पर ही जीवन का विकास संभव है। किसने कितने समय के अनुसार कार्य किया उसी के अनुरूप उसे उपलब्धियाँ मिलती हैं। 
    समय की तीन अवस्थाएँ हैं- भूत, वर्तमान एवं भविष्य। सिर्फ वर्तमान ही हमारे हाथ में होता है; जबकि भविष्य वर्तमान का प्रतिफल होता है और भूत को हम मिटा नहीं सकते। वर्तमान में खड़े रहने की सामथ्र्य विरलों में ही होती है। वर्तमान समय का उपयोग हम कर नहीं पाते। प्रायः हम अतीत की यादों में खोए रहते हैं या फिर भविष्य की कल्पनाओं में डूब जाते हैं। यदि वर्तमान का उपयोग करते भी हैं तो वह भी आधे-अधूरे मन से करते हैं। जिसका परिणाम यह होता है कि महत्त्वपूर्ण वर्तमान क्षण हमसे छूट जाता है। वर्तमान समय की उपेक्षा करके कोई भी इनसान प्रगति नहीं कर सकता, क्योेंकि हमसे जो कुछ कर सकना संभव है वह सिर्फ वर्तमान में ही है। हम चाहे वर्तमान समय का उपयोग करें या न करें, प्रत्येक क्षण हमारे हाथों से रेत के समान छूट रहा है और एक दिन हमारी मुट्ठी खाली हो जाएगी। तब हमें काल के चक्र से कोई नहीं बचा सकता। इसलिए हमें सचेत होकर अपने वर्तमान समय का अधिकतम सदुपयोग करना चाहिए। 
    जो व्यक्ति अपने अतीत के बारे में ज्यादा सोचते होते हैं, अपने अतीत में ही खोए रहते हैं, वे प्रायः मनोरोगी हो जाते हैं; क्योंकि मनोरोग अतीत की ग्रंथियों का ही परिणाम होता है और जो अपने भविष्य की कल्पनाओं में डूबे रहते हैं, वे शेखचिल्ली व पलायनवादी हो जाते हैं। वे भी अपना महत्त्वपूर्ण समय शेखचिल्ली की तरह कोरी कल्पनाओं में नष्ट कर देते हैं। हम प्रायः भूत व भविष्य के झूले में झूलते रहते हैं, पर जो करना है वह नहीं करते और वर्तमान समय की अवहेलना करते हैं। वर्तमान समय की उपेक्षा ही दुर्भाग्य का कारण है। इस संसार में कोई भी व्यक्ति वर्तमान समय की उपेक्षा कर कभी सुखी, शांत व उन्नत नहीं हो पाया है। वर्तमान समय का जो सदुपयोग करता है, वह अपने जीवन में कोई भी उपलब्धि पा लेता है। 
    बौद्धिक व्यक्ति के जीवन का परम उद्देश्य लोक कल्याण करते हुए जीवन से मुक्ति की प्राप्ति है। अतीत और भविष्य की सोच व कल्पनाएँ ही मनुष्य को अपने जीवन के महान उद्देश्य लोक कल्याण से भटकाती हैं। भ्रम तथा व्यर्थ की कल्पनाओं से भरा सारा मायाजाल अतीत व भविष्य से आता है। वर्तमान समय का सदुपयोग ही वह मार्ग है, जिसके द्वारा हम जीवन के महान उद्देश्य लोक कल्याण को प्राप्त कर सकते हैं। वर्तमान में टिकने पर ही विकास संभव है। महात्मा बुद्ध ने कहा था- ‘‘जिस दिन से मैं ठहर गया, मैं बुद्ध हो गया’’। जो वर्तमान में जितना ज्यादा टिकेगा, वह संसार और जीवन के परम उद्देश्य लोक कल्याण, दोनों क्षेत्रों में उतना ही सफल होगा। 
    जो कुछ करने की क्षमता है, वह इसी पल में है। यदि हम अपने जीवन में कुछ करना चाहते हैं तो वर्तमान क्षण को व्यर्थ में न जाने दें। जीवन कितने ही तरह से खोता है, पर सच तो यह है कि हमें होश ही नहीं। हम अपनी यादों, सपनों व इच्छाओं के पीछे दौड़ते रहते हैं और जाने-अनजाने हम वर्तमान समय की उपेक्षा करते हैं। यदि जीवन को सँभालना व सँवारना है तो अभी से हमें वर्तमान के प्रति सचेत होना होगा।
    हमारा अतीत हमें जकड़े रहता है, हमें इससे बाहर आना होगा; क्योंकि अतीत की जकड़न ही मनोरोगों का कारण है। अतीत के परिष्कार से ही वर्तमान में टिकने की क्षमता आती है। वर्तमान में जीने वाला कभी अपराध नहीं कर सकता; क्योंकि वर्तमान में जीना ही होश में रहना है। प्रायः व्यक्ति अपनी कल्पनाओं के कारण ही भयभीत होते हैं; जबकि वास्तविकता वैसी नहीं होती। अपने अतीत में रहने के कारण ही व्यक्ति अवसाद से ग्रस्त हो जाता है और जो भविष्य में डूबा रहता है, वह सारहीन कल्पनाओं तथा व्यर्थ चिन्ता का शिकार हो जाता है। वर्तमान में रहने वाला ही वास्तविक सुख, शांति व प्रसन्नता पाता है। 
    आज तरह-तरह के नशों की खोज की गई हैं; क्योंकि हम वर्तमान का सामना नहीं करना चाहते। वर्तमान का सामना करने से डरते हैं। वर्तमान हमारे सामने अपनी वास्तविकता को लाकर खड़ा कर देता है, पर हम अपनी वास्तविकता को स्वीकार नहीं करना चाहते। वर्तमान से पलायन का सबसे सुगम मार्ग है नशा; क्योंकि नशा हमें बेहोशी देता है। सारे नशों का आविष्कार वर्तमान से भागने के लिए ही हुआ है। पलायन की सुविधा देता है नशा, पर पलायन हमें मनोरोगी भी बनाता है; क्योंकि मनोरोगी परिस्थितियों से भाग लेता है। जिस समय हम संघर्ष करते हैं, वह क्षण होश का होता है। होश में जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, अपनी वास्तविकता को स्वीकारना पड़ता है; जबकि हम अपनी वास्तविकता को स्वीकारना नहीं चाहते और न ही संघर्ष करना चाहते हैं; क्योंकि हम अपनी वास्तविकता व संघर्ष, दोनों से ही घबराते हैं। जीवन का वास्तविक विकास तो संघर्ष में ही है और संघर्ष वही कर सकता है, जो होश में जीता है। 
    कई लोग अपनी पूर्व में हुई गलतियों के कारण उन्हीं के बारे में सोचते व मन ही मन पछताते रहते हैं या फिर किन्हीं कल्पनाओं में खोए रहते हैं; जबकि हमें सिर्फ वर्तमान के बारे में ही सोचना चाहिए, क्योंकि अतीत की गलतियों व भविष्य की व्यर्थ चिंता का निदान सिर्फ वर्तमान के सदुपयोग में है वर्तमान का सदुपयोग वही कर सकता है, जो होश में जीता है। यह तो सच है कि हम एक क्षण भी बिना कर्म किए नहीं रह सकते, क्रियाशील रहना हमारा स्वभाव है और क्रियाशीलता में ही हमारा विकास संभव है। यदि सचेत होकर कर्म किया जाए तो बहुत सारे अनावश्यक कार्यों व अपराध करने से बच सकते हैं। वर्तमान में जीना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार तथा कर्तव्य है। 
    जिस दिन हम कुछ अच्छा कार्य करते हैं तो उस दिन हमें बहुत अच्छा लगता है, एक विश्वास जगता है और भीतर से आत्मसंतोष भी अनुभव होता है, पर जब सारा दिन यों ही कोरी कल्पनाओं और योजनाओं को बुनने में गुजार दिया जाता है, तो खोखलापन व बेचैनी अनुभव होती है। इसलिए हमें सचेत होकर क्रियाशील रहना आवश्यक है अन्यथा धीरे-धीरे शरीर और मन, दोनों ही बेकार हो जाएँगे। यह सच है कि कार्य करने में बाधाएँ तो आएँगी और टूटेंगी भी और निरंतर करते चले जाएँ तो एक दिन उपलब्धियाँ मिलेंगी। 
    यदि हम गंभीरता से अपने जीवन का अवलोकन करें तो स्पष्ट होता है कि हम बातें तो बहुत अच्छी करते हैं, पर वास्तव में हमारी जीवनशैली वैसी नहीं होती। ऐसे लोगों के लिए कहा जाता है कि अच्छे तो हैं पर किसी काम के नहीं। सूखा पेड़ अन्त में जलाने के काम आता है। फलदायी पेड़ की अच्छी प्रकार से देखभाल की जाती है। इसलिए समाजोपयोगी तथा विकास के लिए यह आवश्यक है कि हमारी जीवनशैली भी हमारे उद्देश्य के अनुरूप हो। 
    जो वर्तमान में ठहर जाता है, जिसने वर्ततान का सदुपयोग करना सीख लिया है, वह सभी आपदाओं से उबर जाता है। इसके लिए सबसे पहले आवश्यक है कि वर्तमान में जीना सीखें। दूसरा, अपना लक्ष्य स्पष्ट करें; अर्थात यह स्पष्ट करें कि क्या करना है? हम लोग प्रायः उधार की जिंदगी जीते हैं; क्योंकि हम दूसरों के जैसा होना चाहते हैं। जिसमें सब लोगों को मान-सम्मान मिले, हम वही बनने चल पड़ते हैं। यह हमारी सबसे बड़ी भूल है; जबकि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी एक मौलिकता है जो अन्यत्र नहीं हो सकती। हम अपने ही जैसे हैं, इसलिए लक्ष्य भी अपने ही जैसा होना चाहिए। हम अपने लक्ष्य को निर्धारित करते समय अपनी क्षमता और मौलिकता का विशेष ध्यान रखें। तीसरा, कार्य (लक्ष्य) को प्राथमिकता के अनुसार श्रेणी में बाँटें और मह़त्त्वपूर्ण कार्य को सबसे पहले करें।
पता- बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2
एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ मो0 9839423719
 

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