
कलयुग में कुम्हला रहीं बेटियाँ
हजार की जगह आठ सौ बेटियाँ
फिर भी नहीं खुलती लोगों की अंखियाँ
नन्हीं चिड़िया सी अँगना चहकती बेटियाँ
बाँध संस्कारों की पोटली हमें छोड़ जातीं बेटियाँ
मात-पिता की मुस्कान ले जातीं बेटियाँ
दहेज की बलिबेदी पर चढा दी जातीं बेटियाँ
बेटों के स्वार्थ में दम घोंट दी जाती बेटियाँ
गर हो सबका साथ तो विकट परिस्थितियों से भी जूझ जाती बेटियाँ
पैर जमीं पर होने पर भी आसमां छूने का हक चाहती बेटियाँ
इनके सपने इनके अरमानों को
कैद न करो यहाँ
अटूट जुनून और दृढ़ विश्वास से सपने सच कर जातीं बेटियाँ
दर्द सहकर भी सदा मुस्कुरातीं बेटियाँ
फर्ज व संस्कारों की लाज रखतीं हैं बेटियाँ
अँधेरा दूर कर शिक्षा की लौ जलाती बेटियाँ ।।
✍...पदमावती 'पदम'
आगरा ।
Leave a comment
महत्वपूर्ण सूचना -
भारत सरकार की नई आईटी पॉलिसी के तहत किसी भी विषय/ व्यक्ति विशेष, समुदाय, धर्म तथा देश के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी दंडनीय अपराध है। इस प्रकार की टिप्पणी पर कानूनी कार्रवाई (सजा या अर्थदंड अथवा दोनों) का प्रावधान है। अत: इस फोरम में भेजे गए किसी भी टिप्पणी की जिम्मेदारी पूर्णत: लेखक की होगी।