प्रदीपजी पाल संग उमाजी पाल की  43वीं शुभ विवाह की वर्षगांठ मनायी गयी 



लखनऊ 13 दिसम्बर। पाल वल्र्ड टाइम्स डाॅट काॅम के एडिटर इन चीफ प्रदीपजी पाल संग श्रीमती उमाजी पाल की 43वीं शुभ विवाह की वर्षगांठ प्रधान कार्यालय में बड़े ही उल्लासपूर्ण ढंग से आयोजित की गयी। गोष्ठी का शुभारम्भ मातुश्री अहिल्या बाई होल्कर तथा सभी धर्मों के अवतारों के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित करके एवं पुष्पाजंलि अर्पित करके हुआ। 
    श्रीमती उमाजी तथा प्रदीपजी ने एक-दूसरे को फूल माला पहनाकर जीवन की अंतिम सांस तक पारिवारिक एकता के विचार को घर-घर तक पहुंचाने का संकल्प दोहराया। सभी ने वसुधैव कुटुम्बकम् - जय जगत का प्रेरणादायी गीत गाकर दोनों दम्पत्ति के प्रति सादर सम्मान प्रकट किया। 
    इस अवसर पर प्रसिद्ध कवि सूरज जौनपुरी ने आपके सम्मान में प्रेरणादायी गीत गाकर अपना आशीर्वाद दिया। विशेष रूप से पधारे प्रदीपजी के बड़े साले साहब श्री ओमप्रकाश पाल ने दोनों को सुखी, सफल तथा समृद्ध वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद दिया। वरिष्ठ समाजसेवी श्रीराम पाल, युवा विश्व पाल आदि ने भी अपनी हार्दिक शुभकामनायें दी।
    वरिष्ठ समाजसेवी प्रदीपजी पाल ने इस अवसर पर कहा कि आज का दिन बहुत महान है। आज वाराणसी में बाबा विश्वनाथ के ऐतिहासिक मंदिर के काॅरिडोर के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भव्य उद्घाटन के अवसर पर समाज की आदर्श लोकमाता अहिल्या बाई होलकर की विशाल मूर्ति का अनावरण किया जा रहा है। इस पुनीत कार्य के लिए उन्होंने केन्द्र सरकार तथा उत्तर प्रदेश की सरकार को हार्दिक बधाइयां दी। 
    प्रदीपजी तथा उमाजी सहित सभी ने मिलकर विवाह की प्रतिज्ञायें दोहराई जो इस प्रकार हैं:-
1.    विवाह दो शरीरों और आत्माओं का मिलन है। शरीर और आत्मा दोनों ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित रहते हैं। यह मिलन 
आध्यात्मिक मिलन है जो आजीवन जुड़ा रहता है। वही विवाह सफल होता है जहाँ सांसारिक और आध्यात्मिक बन्धन दोनों का सामंजस्य है।
2.    विवाह दो के बीच नहीं तीन अर्थात वर-वधु तथा परमात्मा के बीच होता है। परमात्मा को साक्षी मानकर वर-वधु विवाह की सारी प्रतिज्ञाऐं करते हैं। 
3.    विवाह स्त्री-पुरूष का आत्मिक और हार्दिक मिलन है। मस्तिष्क और हृदय की आपसी स्वीकृति है। स्त्री-पुरूष दोनों का कर्तव्य है कि वे दोनांे एक दूसरे के स्वभाव और चरित्र को समझें। दोनों के आपसी सम्बन्ध अटूट हों। ईश्वर को साक्षी मानकर एक दूसरे के प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार तथा एक अच्छा जीवन साथी बनने का उनका एकमात्र लक्ष्य होना चाहिये।
4.    वैवाहिक बन्धन नैतिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक हैं। वैवाहिक बन्धन में केवल शारीरिक बन्धन को महत्व न देकर 
आध्यात्मिक गुणों के द्वारा ईश्वर की निकटता के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए। तथापि ईश्वर द्वारा निर्मित इस सृष्टि को आगे बढ़ाने में योगदान देना चाहिए।
परमपिता परमात्मा की साक्षी में पति-पत्नी की आपसी सहमति:-
1.     आज से हम एक-दूसरे के साथ अपने व्यक्तित्व को मिलाकर नये जीवन की सृष्टि करते हैं। 
2.     पूरे जीवन भर एक-दूसरे के मित्र बनकर रहेंगे और बड़ी से बड़ी कठिनाईयांे एवं विपत्तियों में एक-दूसरे                 को पूरा-पूरा विश्वास, स्नेह तथा सहयोग देते रहंेगे।
3.    जीवन की गतिविधियों के निर्धारण में एक-दूसरे के परामर्श को महत्व देंगे।
4.    एक-दूसरे की सुख-शांति तथा प्रगति-सुरक्षा की व्यवस्था करने में अपनी शक्ति, प्रतिभा, योग्यता                     तथा साधनों आदि को पूरे मनोयोग एवं ईमानदारी से लगाते रहेंगे।
5.    दोनों अपनी ओर से श्रेष्ठ व्यवहार बनाए रखने का पूरा-पूरा प्रयत्न करेंगे। मतभेदों और भूलों का सुधार         शांति के साथ करेंगे। किसी के सामने एक-दूसरे को लांछित एवं तिरस्कृत नहीं करेंगे। 
6.    दोनों में से किसी के असमर्थ या विमुख हो जाने पर भी अपने सहयोग और कत्र्तव्यपालन में कमी नहीं आने         देगे। 
7.    कत्र्तव्यपालन एवं लोकहित जैसे कार्यो में एक-दूसरे के सहायक बनेंगे।
8.    एक-दूसरे के प्रति पतिव्रत तथा पत्नीव्रत धर्म का पालन करेंगे। इसी मर्यादा के अनुरूप अपने विचार,         दृष्टि एवं आचरण विकसित करेंगे।
    अन्त ने प्रदीपजी तथा उमाजी ने सभी के प्रति हार्दिक आभार प्रकट किया।    
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