
21 मई आतंकवाद विरोधी दिवस पर विशेष लेख
- प्रदीपजी पाल, लेखक
वर्तमान में आतंकवाद ने किसी प्रत्यक्ष युद्ध से ज्यादा भयानक रूप धारण कर लिया है। आतंकवाद शब्द का अर्थ ही है आतंक फैलाना। आतंकवाद का वैज्ञानिक तथा राजनैतिक अर्थ यह है कि अनिश्चितता तथा अव्यवस्था पैदा करना। आज आतंकवाद अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बन गया है। आंतकवादी निम्नलिखित विधियों से राष्ट्रीय तथा प्रान्तीय सुरक्षा और जनमानस को प्रभावित कर रहे हैं:- 1. संचार व्यवस्था नष्ट करके, 2. अपहरण और बन्धक बनाकर, 3. सामूहिक नरसंहार करके तथा
4. आत्मघाती हमलों द्वारा।
राष्ट्र स्तरीय आतंकवाद तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के स्वरूप में कई भिन्नताएँ हैं। राष्ट्रीय आतंकवाद मुख्यतः सामाजिक, आर्थिक कुव्यवस्था का परिणाम है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद मुख्यतः जेहाद अथवा स्वतंत्रता प्राप्ति के उद्देश्य से प्रतिफलित हुआ है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद ने कई अवसरों पर परमाणु युद्ध की आशंका भी उत्पन्न कर दी है। आतंकवाद जहाँ एक ओर लोकतंत्र एवं सम्प्रभुता के लिए खतरा है, वहीं दूसरी ओर शांति, सुरक्षा एवं विकास के लिए भी घातक है।
21 मई 1991 को देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरूंबुदूर में हत्या कर दी गई थी। श्रीलंका के लिट्टे के आतंकवादियों ने एक आत्मघाती विस्फोट से इस घटना को अंजाम दिया था, जिसमें श्री राजीव गांधी की मौत हो गई थी। श्री राजीव गांधी बलिदान दिवस प्रतिवर्ष 21 मई को आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
आतंकवाद विरोधी दिवस मनाने का उद्देश्य राष्ट्रीय हितों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों, आतंकवाद के कारण आम जनता को हो रही परेशानियों तथा आतंकी हिंसा से दूर रखना है। इसी उद्देश्य से स्कूल-कालेज, विश्वविद्यालयों, सरकारी कार्यालयों, एनजीओ, निजी संस्थानों में आतंकवाद और हिंसा के खतरों पर परिचर्चा, वाद-विवाद, संगोष्ठी, सेमीनार और व्याख्यान आदि के आयोजन किये जाते हंै। साथ ही आतंकवाद का यथाशक्ति विरोध करने की शपथ ली जाती है।
वर्तमान में आतंकवाद ने अन्तर्राष्ट्रीय रूप धारण कर लिया है। अब यह किसी एक देश की नहीं वरन् सारे विश्व की समस्या है। फिर चाहे अमरीका और जर्मनी जैसे पश्चिमी देश हों, या फिर भारत-पाकिस्तान जैसे विकासशील देश आंतकवाद से सभी जूझ रहे हैं। पाकिस्तान के लोकतंत्र पर सेना तथा आतंकवादियों का कब्जा है। अगर कोई सरकार वास्तव में आतंक विरोधी नीति बनाना चाहती है, तो उसे अपने कुछ नागरिकों द्वारा अनुभव किये गये अन्यायों और शिकायतों को समझने की दिशा में संसाधन लगाना चाहिए, जिसका इस्तेमाल करके आतंकी समूह असंतुष्ट लोगों को हिंसक विचारधाराओं की ओर आकर्षित करते हैं। सरकार को यह कठोर तथ्य स्वीकार करना पड़ेगा कि आतंकवाद का जन्म मौजूदा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असंतोष से होता है।
शासन के अनेक दायित्वों में जनसुरक्षा एवं सतर्कता तंत्र को सक्रिय व सजग रखना भी है, परंतु हमने इन आवश्यक बिन्दुओं के प्रति असावधानी बरती। इसीलिए आतंकवाद अपना ताण्डव दिखा रहा है। देश का दायित्व उठाने वाले राजनेता विचार करें कि आतंकवादी किसी दूसरे ग्रह से तो नहीं आते। हमारा सतर्कता तंत्र चुस्त होना चाहिए और राजनेताओं को भी जागरूक होना होगा। हमारा संकल्प होना चाहिए कि हम आतंक को जड़ से मिटायेगे, अमन की राह मानवता को दिखायेंगे।
विश्व स्तर पर कुछ लोक कल्याणकारी संगठन आतंकवाद को समाप्त करने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। वे आतंकवादी विचारधारा से प्रभावित होने के सामाजिक पहलुओं पर गौर कर रहे हैं। ताकि जो लोग आतंकवाद तथा कट्टरपंथ के चंगुल से निकलना चाहते हैं, उनकी मदद की जा सके। ‘एक्जिट नार्वे’ ऐसी ही संस्था है। 1997 में नार्वे की पुलिस अकादमी में दो रिसर्चरों ने इसकी शुरूआत की थी। इसके तीन प्रमुख मकसद हैंः- 1. स्थानीय स्तर पर नेटवर्क विकसित कर नस्लवादी या हिंसक समूहों से जुड़े बच्चों तथा किशोरों की मदद करना, 2. युवाओं को इन समूहों से दूर करने में मदद करना तथा 3. ऐसी जानकारी का प्रचार करना, जो युवाओं को हिंसा का मार्ग छोड़ने के लिए सहायक हो।
‘एक्जिट नार्वे’ दक्षिणपंथी सोच के चंगुल में फंसने के सामाजिक पहलुओं पर गौर करता है। इस जानकारी के आधार पर लोगों की मदद की जाती है। अब ये संगठन कई यूरोपीय देशों में सक्रिय हो गया है। ये उन लोगों के बीच काम करता है, जो अब आतंकवादी सोच वाले संगठनों से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। संस्था ऐसे लोगों से खुद संपर्क नहीं करती. जो लोग इसकी मदद चाहते हैं, उन्हें ही आगे आना होता है।
‘एक्जिट जर्मनी’ की प्रोजेक्ट मैनेजर फैबियन विचमैन कहते हैं, हम स्वयंसेवियों के जरिए काम करते हैं। लोगों को हमारे पास आना होता हैं। उन्हें हमें फोन या ई-मेल करना होता है। फिर हम ये देखते हैं कि कोई इंसान, आतंकवादी संगठन से दूर होने के लिए किस हद तक तैयार है। ऐसे लोगों के लिए सिर्फ अपने अतीत पर पर्दा डालना जरूरी नहीं। उन्हें पछतावा होना चाहिए और आतंकवादी सोच से दूर होने का उनका इरादा भी मजबूत होना चाहिए। संपर्क करने वाले लोगों से बात करने के बाद संस्था, उन्हें आतंकवादी विचारधारा के शिकंजे से दूर होने में मदद करती है। इसके लिए सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और कानूनी रास्ते अपनाए जाते हैं। पूरी प्रक्रिया गोपनीय रखी जाती है। इसमें वो लोग ज्यादा सक्रिय होते हैं, जो पहले कभी किसी कट्टरपंथी संगठन से जुड़े रह चुके होते हैं।
आतंकवाद को किस तरीके से परिभाषित किया जाए, यह अब भी विवाद का एक मुद्दा है। इस संवेदनशील मामले में प्रचलित विचारधारा यह है कि किसी एक के विचार में जो आतंकवादी है, वह दूसरे के विचार में स्वतंत्रता सेनानी हो सकता है. ऐसे में दोनों ही पक्षों को ध्यान से सुनकर कोई निर्णय लेना चाहिए। अब यूरोपीय संघ आतंकवाद की एक सर्वसम्मत परिभाषा तैयार करने पर विचार कर रहा है।
20वीं सदी की शिक्षा ने संकुचित राष्ट्रीयता पैदा की थी जिसके दुखदायी परिणाम दो विश्व युद्धों, हिरोशिमा व नाकासाकी का महाविनाश तथा राष्ट्रों के बीच अनेक युद्धों के रूप में सामने आ चुके हैं। प्रतिवर्ष 155 देशों का रक्षा बजट बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। इस पर सभी देशों को मिल-बैठकर विचार करना चाहिए। आतंकवाद तथा पड़ोसी देशों से देश को सुरक्षित करने के लिए शान्ति प्रिय देश भारत को भी अपना रक्षा बजट प्रतिवर्ष बढ़ाना पड़ रहा है। युद्ध तथा युद्धों की तैयारी में हजारों करोड़ डालर विश्व में प्रतिदिन खर्च हो रहे हैं। शान्ति पर कुछ भी खर्चा नहीं आता है। युद्धों तथा युद्धों की तैयारी से पैसा बचाकर इस पैसे से संसार के प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा, सुरक्षा, चिकित्सा, रोटी, कपड़ा और मकान की अच्छी व्यवस्था की जा सकती है। साथ ही विश्व के सभी युवाओं के लिए सम्मानजनक रोजगार की व्यवस्था की जा सकती है।
सारे विश्व की एक अर्थ व्यवस्था हो और एक प्रभावशाली विश्व न्यायालय का गठन हो। एक प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून बनाने वाली प्रभावी वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) का निर्माण हो और विश्व की एक राजनैतिक व्यवस्था हो, एक भाषा, एक मुद्रा हो। विश्व सरकार बने तथा विभिन्न महान संस्कृतियों की विविधता की रक्षा हो। इस प्रकार विश्व की एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाकर निकट भविष्य में सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने की परिकल्पना साकार होगी।
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