1 अगस्त -  लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की पुण्य तिथि पर शत शत नमन!

अब युवा भारत एक लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था का गठन

करने का क्रान्तिकारी कदम उठायें!

- प्रदीप कुमार सिंह, लखनऊ

            तिलक समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, पत्रकार और भारतीय इतिहास के विद्वान थे। वह लोकमान्य नाम से मशहूर थे। तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि में हुआ था। तिलक के पिता श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक संस्कृत के विद्वान और प्रसिद्ध शिक्षक थे। तिलक एक प्रतिभाशाली छात्र थे। वह अपने कोर्स की किताबों से ही संतुष्ट नहीं होते थे। गणित उनका प्रिय विषय था। वह क्रेम्बिज मैथेमेटिक जनरल में प्रकाशित कठिन गणित को भी हल कर लेते थे। तिलक का मानना था कि अच्छी शिक्षा व्यवस्था ही अच्छे नागरिकों को जन्म दे सकती है। उन्होंने बी.. करने के बाद एल.एल.बी. की डिग्री भी प्राप्त कर ली। वह भारतीय युवाओं की उस पहली पीढ़ी से थे, जिन्होंने आधुनिक काॅलेज एजुकेशन प्राप्त की थी।

            तिलक को उनके दादा श्री रामचन्द्र पंत जी 1857 को हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के किस्से सुनाते थे। इसका प्रतिफल यह हुआ कि तिलक ने बचपन से ही देश की तत्कालीन परिस्थितियों पर चिन्तन करना शुरू कर दिया। तिलक के अन्दर यह योग्यता विकसित हुई कि राष्ट्र को एक सूत्र में कैसे पिरोया जा सकता है? जीवन के सबसे जरूरी समय में माता-पिता का सानिध्य नहीं मिल पाया था। केवल दस वर्ष की अवस्था में ही तिलक की माँ उन्हें छोड़कर चल बसीं और कुछ ही वर्षों के बाद पिता का भी देहांत हो गया। सच्चे जननायक तिलक को लोगों ने आदर से लोकमान्य अर्थात लोगों द्वारा स्वीकृत नायक की पदवी दी थी। 

            वह एक महान शिक्षक थे। उन्होंने तकनीक और प्राबिधिक शिक्षा पर जोर दिया। तिलक अच्छे जिमनास्ट, कुशल तैराक और नाविक भी थे। तिलक ने महाराष्ट्र में 1880 में न्यू इग्लिश स्कूल स्थापना की। युवाओं को अच्छी शिक्षा देने के लिए महान समाज सुधारक श्री विष्णु शास्त्री चिपलूणकर के साथ मिलकर 1884 डेक्कन एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की जिसने फरक्यूसन काॅलेज की स्थापना पुणे में की। 

            सन 1893 में तिलक ने अंगे्रजों के विरूद्ध भारतीयों को एकजुट करने के लिए बड़े पैमाने पर सबसे पहले गणेश उत्सव की शुरूआत की थी, इस अवधि में स्वामी विवेकानंद उनके यहां ठहरे थे। तिलक की स्वामी जी से अध्यात्म एवं विज्ञान में समन्वय एवं आर्थिक समृद्धि पर लम्बी चर्चा हुई। स्वामी जी ने तिलक के प्रयासों को मुक्त कंठ से सराहा। गणेश उत्सव मंे लोगांे ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और इस प्रकार पूरे राष्ट्र में गणेश चतुर्थी मनाया जाने लगा। तिलक ने यह आयोजन महाराष्ट्र में किया था इसलिए यह पर्व पूरे महाराष्ट्र में बढ़-चढ़ कर मनाया जाने लगा। वर्तमान में गणेश उत्सव की व्यापक छवि आज भी पूरे महाराष्ट्र में देखने को मिलती है।

            तिलक छत्रपति शिवाजी को अपना आदर्श मानते थे। छत्रपति शिवाजी का शासन प्रबन्ध एक लोकतांत्रिक राज्य प्रणाली का था। राज्य के सुधार संचालन के लिए उसे प्रान्तों, जिलों एवं परगनों में बांटा गया था। वित्त व्यवस्था के साथ-साथ भूमि कर प्रणाली का आदर्श रूप प्रचलित था। मुगल साम्राज्य के खिलाफ दक्षिण भारत में शक्तिशाली हिन्दू राष्ट्र की नींव रखने वाले सर्वशक्तिशाली शासक छत्रपति शिवाजी कहे जा सकते हैं। उन्हें हिन्दुओं का अन्तिम महान राष्ट्र निर्माता कहा जाता है। छत्रपति शिवाजी का निर्मल चरित्र, महान पौरूष, विलक्षण नेतृत्व, सफल शासन प्रबन्ध, संगठित प्रशासन, नियन्त्रण एवं समन्वय, धार्मिक उदारता, सहनशीलता, न्यायप्रियता सचमुच में ही अलौकिक थी। यह सब गुण उन्हें अपनी माता जीजाबाई तथा गुरू समर्थ रामदास से मिले थे।

            लोकमान्य तिलक और देश के प्रसिद्ध उद्योगपति तथा औद्योगिक घराने टाटा समूह के संस्थापक श्री जमशेदजी टाटा ने साथ मिलकर बाम्बे स्वदेशी को-आॅपरेटिव स्टोर्स शुरू किये थे। देश के इन दो महान् व्यक्तियों की इसके पीछे भावना देशवासियों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने की थी। सहकार-सहकारिता के विचार को आज भारत सहित विश्व के आर्थिक जगत ने अपनाया है। 

            तिलक के प्रमुख सहयोगी में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले महान क्रान्तिकारी बिपिन चन्द्र पाल का जन्म 7 नवम्बर, 1858 में हुआ था। वे लाल बाल पाल के तिकड़ी के हिस्सा थे। वे असहयोग आंदोलन जैसे विरोध अंहिसावादी प्रदर्शनों के खिलाफ थे। स्वदेशी, गरीबी उन्मूलन और शिक्षा के लिए उन्होंने खूब काम किया। कई अखबार छापे जिनमें परिदर्शक (बंगाली साप्ताहिक, 1886), न्यू इंडिया (1902, अंग्रेजी साप्ताहिक), और बंदे मातरम (1906, बंगाली दैनिक) सबसे प्रमुख रहे।

            तिलक के प्रमुख सहयोगी में लाला लाजपत राय ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने वाले मुख्य क्रान्तिकारी पंजाब केसरी (शेर पंजाब नाम से विख्यात) लाल बाल पाल तिकड़ी में से एक प्रमुख नेता थे। वह पंजाब नेशनल बंैक एवं लक्ष्मी बीमा कम्पनी के संस्थापक थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गरम दल बनाए हुए थे, उदारवादियों के विपरीत, जिसका नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा किया जा रहा था। लाला जी ने बंगाल के विभाजन के विरूद्ध किए जा रहे संघर्ष में भाग लिया। लोकमान्य तिलक सुरेंद्रनाथ बनर्जी, बिपिन चंद्र पाल और अरविंद घोष के साथ उन्होंने स्वदेशी के अभियान के लिए बंगाल और बाकी देश को प्रेरित किया।

            तिलक के प्रमुख सहयोगी में आयरलैण्ड की मूल निवासी एनी बेसेंट (1847-1933) एक समाज सुधारक एवं राजनेता थी। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की 33वीं अध्यक्ष, थियोसोफिकल सोसाइटी की दूसरी अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष थी जो कि एक अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक संस्था है। तिलक ने 1916 में एनी बेसेंट तथा जिन्ना जो कि उस समय एक राष्ट्रवादी छवि के नेता थे उनके साथ मिलकर अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की थी। 2018 में तिलक होमरूम के अध्यक्ष के रूप में इंण्लैण्ड भी गये। एनी बेसेंट का कहना था कि मैं अपनी समाधि पर यही एक वाक्य चाहती हूँ - उसने सत्य की खोज में अपने प्राणों की बाजी लगा दी।

            तिलक देश के पहले भारतीय पत्रकार थे जिन्हें पत्रकारिता के कारण तीन बार जेल की सजा हुई थी। तिलक ने अपनी कलम को हथियार के रूप में चुना और दो समाचार पत्र मराठी में केसरी तथा अंग्रेजी में मराठा निकालकर अंग्रेजी शासन को हिला दिया।

क्रंातिधर्मी पत्रकार और पत्रकारिता जगत के लिए प्रेरणापुंज हैं लोकमान्य तिलक। तिलक ने अपनी पत्रिकाओं के माध्यम से जन-जागृति की नयी पहल की। तिलक द्वारा प्रकाशित दोनों समाचार पत्र आज भी छपते हैं। तिलक ने तीव्र और प्रभावशाली भाषा तथा लेखनी का प्रयोग करते हुए प्रत्येक भारतीय से अपने हक के लिए लड़ने का आवाह्न किया। मीडिया के कारण ही आज विश्व के 100 से ज्यादा देश लोकतंत्र की खुली हवा में सांस ले रहे हैं।

            अन्यायपूर्ण अंग्रेजी शासन के खिलाफ 30 अप्रैल 1908 का रात्रि में खुदीराम बोस तथा प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर में बम विस्फोट किया। केसरी तथा मराठा के मई जून के चार अंकों में प्रकाशित सम्पादकीय को राज द्रोहात्मक ठहराकर अंग्रेज जज ने तिलक को छः वर्ष की देश के बाहर बर्मा की जेल में भेजने की सजा सुनायी। तिलक ने बम विस्फोट का समर्थन किया था। उन्होंने लिखा था कि यह एक बम भारत की आजादी प्राप्त नहीं करा सकता लेकिन यह उन स्थितियों की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करता है जिन स्थितियों ने इस बम को जन्म दिया। तिलक ने यूँ तो अनेक पुस्तकें लिखीं किन्तु श्रीमद्भगवद्गीता की व्याख्या को लेकर बर्मा की मांडले जेल में लिखी गयी गीता-रहस्य सर्वोकृष्ट है जिसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। तिलक का मानना था कि गीता मानवता की सेवा का पाठ पढ़ाती है। समाजसेवी ‘‘श्यामजीकृष्ण वर्मा को लिखे तिलक के पत्र’’ पुस्तक भी काफी प्रेरणादायी है।

            तिलक के चार सूत्रीय के कार्यक्रम थे - स्वराज, स्वदेशी, विदेशी वस्तुओं का बाहिष्कार तथा राष्ट्रीय शिक्षा। महात्मा गांधी ने भी इन चारों कार्यक्रमों को बाद में आजादी के लिए अपना हथियार बनाया। तिलक को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पुरोधा माना जाता हैं। तिलक कास्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, मैं उसको लेकर रहूंगाका नारा देश भर में गुंजने लगा। स्वराज शब्द जबान पर आने के साथ ही यह कल्पना भी आती है कि यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले भी लूंगा। लोकमान्य तिलक ने आजादी के प्रति अटूट विश्वास तथा स्वाभिमान प्रत्येक भारतीय में जगा दिया। वह लोगों को बताना चाहते थे कि बीमारी रूपी गुलामी की दवा आजादी के रूप में हमारे अंदर ही है। जिस दिन देश का प्रत्येक व्यक्ति इस बात को जान लेगा उस दिन अंग्रेज भारत छोड़कर चले जायेंगे। 

            1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के बाद अंग्रेजांे ने इसकी वापसी दुबारा हो इसके लिए कांग्रेस की स्थापना की योजना बनायी। यह भारतीयों के

पाल वर्ल्ड टाइम्स की खबरों को शेयर करें और सोशल मीडिया पर भी फॉलो करना न भूलें।