
रूके न जो,
रूके न जो, रूके न जो, झुके न जो, मिटे न जो, दबे न जो,
हम वो इन्कलाब हैं, जुल्म का जवाब हैं,
हर गरीब हर शहीद का हमीं तो ख्वाब हैं,
रूके न जो
हम मिटा के ही रहेंगे, मरतबों के राज को
तख्त और ताज को, कल के लिए आज को
जिसमें ऊंच-नीच है ऐसे हर समाज को
हम बदल के ही रहेंगे, वक्त के मिजाज को
क्रांति के राग है, जंगलों की आग है
सामने जो आयेगा, जलायेंगे, मिटायेंगे
रूके न जो, रूके न जो, झुके न जो, मिटे न जो, दबे न जो.....!
लड़ रहे हैं इसलिए की प्यार जग में जी सके
आदमी का खून कोई आदमी न पी सके 2
धर्म के, धर्म के, देश के, भाषा के भेष के
भेद हम मिटायेंगे, समानता को लायेंगे
रूके न जो, रूके न जो, झुके न जो, मिटे न जो, दबे न जो.....!
जानते नहीं हैं फर्क हिन्दू-मुसलमान का
मानते हैं रिश्ता हम इंसान से इंसान का
हुक्म चल सकेगा नहीं जुल्मी हुक्मरान का
सारे जग पे हक हमारा, हम पे हक जहान का 2
गरीब को जगायेंगे, गरीबी को हटायेंगे
एकता के जोर पे किसी से भी लड़ जायेंगे.
रूके न जो, रूके न जो, झुके न जो, दबे न जो, मिटे न जो
हम वो इंकलाब हैं, जुल्म का जवाब हैं
हर शहीद का, गरीब का हमीं तो ख्वाब हैं।
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