
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से हुआ बहुजन बाल रंग कार्यशाला का समापन
प्रयागराज 22 जनवरी, प्रबुद्ध फाउंडेशन, देवपती मेमोरियल ट्रस्ट, डा. अम्बेडकर वेलफेयर एसोसिएशन (दावा), राष्ट्रीय शिशु विद्यालय और बाबासाहेब शादी डाट काम के संयुक्त तत्वाधान में मम्फोर्डगंज स्थित राष्ट्रीय शिशु विद्यालय में सात से सत्रह आयु वर्ग के बच्चों के सृजनात्मक, कलात्मक और व्यक्तित्व विकास के लिये बीस जनवरी से संचालित द्वितीय शीतकालीन बहुजन बाल रंग कार्यशाला का समापन दर्जनों नृत्य, नाटक व गायन की प्रस्तुतियों के साथ उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में किया गया।
कार्यशाला के समापन पर सर्वप्रथम बच्चों ने कबीरा कहे ये जग अंधा, बुद्धं शरणं गच्छामि, भगवान बुद्ध की ज्योति अमर, तेरी आरती उतारू रे, काल चक्र के आगे आगे, मुझे दुश्मन के बच्चों को पढ़ना है, बेटियों को बचा लो, साथी हाथ बढ़ाना जैसी आधा दर्जन से अधिक नृत्य नाटिकाओं व गीतों की प्रस्तुतियां देकर बच्चों ने दर्शकों को भाव विभोर कर दिया तो वहीं दूसरी ओर अंगुलिमाल, महादानी राजा बलि, पाखंड, एक कड़वा सच, परिवर्तन की बात, अली बाबा और चालीस चोर और आदिमानव की संस्कृति जैसी आधा दर्जन से अधिक लघु नाटकों की प्रस्तुतियों से बहुजन समाज को एक बार पुनः बहुजन साहित्य, कला और संस्कृति के साथ-साथ बहुजन रंगमंच को पुनर्स्थापित करने के साथ अपनी खोई हुई बहुजन संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और उसके विकास के साथ-साथ बहुजन समाज की विलुप्त हुई विरासत को प्राप्त कर हुक्मरान व शासक कौम बनाने की बात करती दिखी।
नाटक अंगुलिमाल में तथागत बुद्ध ने अपने प्रेम, करुणा, शील, समाधि, प्रज्ञा, दया व मैत्री से अंगुलिमाल जैसे दुद्रांन्त डाकू को हथियार त्यागने पर विवस कर देता है। बुद्ध का कथोपकथन कि जब हम किसी को जीवन दे नहीं सकते तो उसका जीवन ले भी नही सकते है।
वहीं दूसरी ओर पूर्व राज्यपाल माताप्रसाद द्वारा लिखित नाटक महादानी राजा बलि में दिखाने का प्रयास किया गया कि आज से हजारों हजार साल पहले श्रमण संस्कृति का वाहक राजा बलि ही वह राजा था जिसकी दानवीरता विश्व विख्यात थी, जिसको देवताओं ने कैसे छल, कपट से उसका राज्य छीनकर उसका बध कर देते है यानी बलि कुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई को तथाकथित असमानता की व्यवस्था के पोषक लोगों ने बलि के स्थान पर रघुकुल रीत सदा चलि आई कर दिया यानी श्रमण संस्कृति पर लीपापोती कर आर्य संस्कृति को प्रतिस्थापित कर दिया गया को दिखाने का प्रयास किया गया है।
वही प्रख्यात दलित साहित्यकार सूरजपाल चौहान द्वारा लिखित कहानी 'परिवर्तन की बात' का नाट्य रूपांतरण की प्रस्तुति में रघु ठाकुर की गाय ठंड लगने से मर जाती है। किसना मरी हुई गाय की खाल छीलने व उसे उठाने से मना कर देता है। रघु ठाकुर किसना पर साम दाम दंड भेद जैसी चाल चलकर बहुत प्रताड़ित करता है किंतु किसना व उसके समाज के लोगों ने समाज में परिवर्तन कैसे होगा दृढ़ संकल्पित होकर संकल्प लेते हैं कि वे कुछ अन्य सम्मानजनक काम करके जीवन यापन कर लेगे लेकिन मरी हुई गाय न उठायेगे न उसकी खाल उतारेंगे।
वहीं दूसरी ओर नाटक पाखंड व एक कड़वा सच के माध्यम से दिखाने का प्रयाश किया गया है कि समाज में असमानता के पोषक सनातनधर्मी वर्णाश्रम व्यवस्था के संस्थापक लोगों को देश की आजादी के पचहत्तर साल बाद आज भी बहुजनों के निचले पायदान से लेकर ऊपरी पायदान तक बाबासाहेब के संविधान व शिक्षा के माध्यम से अच्छे अच्छे पदों पर पदस्थापित होना स्वीकार नही कर पा रहे है। अंधविश्वास, पाखंड और कुर्तियों के जाल में बहुजन समाज को किस तरह से मूर्ख और धूर्त बनाकर सत्यनारायण की कथा सुनाकर कैसे दूसरे का धन संचय किया जाता है दिखाया गया है। नाटक द्वारा देश में फैले जातिवाद से कैसे मुक्त हुआ जा सकता है को दिखाया गया है।
कार्यशाला का निर्देशन प्रबुद्ध फाउंडेशन के प्रबंधक/सचिव रंगकर्मी आईपी रामबृज द्वारा किया गया। नृत्य, नाटक व गायन में जिज्ञासा पटेल, प्रियंका, रीत सिंह, सिमरन कश्यप, नैना यादव, तनु जयसवाल, अंबिका, सुनैना यादव, महक, निधि कश्यप, आयुषी, खुशबू, प्रियांशी, नेहा, लव सिंह, अंशु पाल, अनुपम शर्मा, अभिषेक पाल, ग्रंथ केसरवानी, अमन भारतीया, मोहित, अंकित पाल, हर्ष वर्मा, शिवम सरोज, कार्तिक पाल, पुष्पेन्द्र पाल, शुभ केसरवानी, अंश, सगुन जयसवाल, पूर्वी गौड़, सांध्य पटेल, तनु सिंह, पूर्वी केसरवानी, साक्षी शर्मा, आयुषी कनौजिया, गौरी गौतम, अंशिका शर्मा, ऐंजल केसरवानी, सुरभी केसरवानी, सोनाली पाल, चाहत, मानशी जायसवाल, अंशिका पटेल, शालू कुमारी आदि बच्चों ने प्रतिभाग किया।
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