कुंडली मिलान से ज्यादा महत्वपूर्ण वर वधु के स्वभाव एवम गुणों का मिलान 

 

 आज के आधुनिक युग में मुझे यह देखकर बड़ा दुख होता है, जब एक कम पढ़ा लिखा पंडित एक पढ़े लिखे परिवार के शिक्षित विवाह योग्य बच्चो के विवाह का निर्णय गुण मिलाकर करता है कि वर वधु के गुण मिलते है या नहीं मिलते है । उनका वैवाहिक जीवन सफल होगा या नहीं होगा , जबकि वास्तविकता यह है कि  बेचारा वह पंडित जीवन में असफल होकर पूजन पाठ, पत्रिका मिलान इत्यादि कार्य कर अपने परिवार का जीवनयापन कर रहा होता है और समाज के अधिकतर लोग  अंधभक्त होकर उनका अनुसरण कर रहे होते है । करोड़ों व्यक्तियों के भाग्य को केवल 12 राशियों में विभक्त कर उनके एक जैसे भाग्य का निर्धारण करना कहां तक उचित है या उनका  स्वभाव एक जैसा होना कहां तक संभव है ? जरा कल्पना कीजिए देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का जब जन्म हुआ होगा तब उसी घड़ी में देश में कितने अन्य बच्चो ने भी  जन्म लिया होगा, जिनकी राशि मोदी जी से मिलती होगी । यदि सभी के भाग्य समान है तो उस घड़ी में जन्मे सभी बच्चों को देश का प्रधानमंत्री होना चाहिए जबकि यदि सर्वे किया जाय तो मोदी जी की जन्मघड़ी में उत्पन्न हुए बच्चों में से हो सकता है कि कुछ आज भी गुमनामी भरा निर्धन जीवन जी रहे होंगे । 

 आज यदि समाज के लोग अपने बच्चो की योग्यता को देखते हुए उनके योग्य जीवनसाथी समाज में ढूंढे तो अतिउत्तम होगा । अपने बच्चो  की लग्न पत्रिका मिलाने के बजाय भावी वर वधु के विचारो का मिलान करे , उनके स्वभाव को समझे और यह देखे कि हम किस परिवार में अपने बच्चो का विवाह कर रहे है , उस परिवार का समाज में क्या नैतिक स्थान है ? भावी वर की अच्छी नौकरी के साथ ही यह देखना भी अत्यंत आवश्यक है कि क्या उस परिवार में हमारी बच्ची खुश रह सकती है या नहीं ? शादी केवल वर वधू का मिलन मात्र ही नहीं है, वरण दो परिवारों का मिलन भी है । परिवार एक विशाल वट वृक्ष की भांति होता है, परिवार के सभी सदस्य उसके पत्तो की तरह होते है । जिस प्रकार वृक्ष के हरे भरे पत्तों को देखकर वृक्ष की हरियाली का पता चलता है ठीक उसी भांति परिवार के शालीन सदस्यो को देखकर भावी वर वधु के व्यवहार , स्वभाव का पता लग सकता  है । 

 मैने अक्सर देखा है कि कई लड़के लड़कियों के माता पिता कुण्डली मिलान के चक्कर में अच्छे अच्छे रिश्तों को ठुकराते जाते है, और बच्चो की उम्र बड़ती जाती है और जब बच्चों की उम्र 30 वर्ष से ऊपर हो जाती है तब कई बार लग्न पत्रिका मिलाकर लड़कियों की शादी ऐसी जगह भी कर दी जाती है, जहां वह जीवन भर दुखी रहती है । 

 कहते है कि भगवान श्रीराम और सीता माताजी के 36 में से 36 गुण मिले थे पर फिर भी उनका वैवाहिक जीवन सुखमय नही रह सका था । यदि लग्न पत्रिका के मिलान से ही वर वधु का जीवन सुखमय हो सकता है तो आज कोर्ट में तलाक के कई केस पेंडिंग नही होते । 

 अंत में समाज के सभी साथियों से यही कहना चाहूंगा कि लग्न पत्रिका मिलान के नाम पर बच्चो का भविष्य खराब ना करे । लग्न पत्रिका मिलान से ज्यादा महत्वपूर्ण है, वर वधु के विचारो का मिलान करना । यदि उनके विचार आपस में मिलते है तो वे एक अच्छे कामयाब जीवनसाथी बन कर एक अच्छे शांतिप्रिय समाज के निर्माण में सहायक हो सकते है ।  

 नोट: यह लेख समाज जन जागृति के उद्देश्य से  लिखा गया है । यदि इससे किसी की भावनाएं आहत होती है, तो उसके लिए मैं क्षमा चाहूंगा । 

 विजय वर्मा 
 इंदौर ।

पाल वर्ल्ड टाइम्स की खबरों को शेयर करें और सोशल मीडिया पर भी फॉलो करना न भूलें।