
समाज में नारी शक्ति की भागीदारी
पुण्य श्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर जी की 297वी जयंती पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाई गई साथ ही भव्य शोभायात्राएँ व शानदार कार्यक्रम भी आयोजित किये गये । लेकिन सोचने वाली बात है कि इन कार्यक्रमों में जो कि एक नारी के सम्मान में ही थे उस समाज नारी शक्ति की उपस्थिति ही नाम मात्र की थी।चिंता की बात यह है कि जिस नारी के सम्मान में हमारा समाज बड़े बड़े आयोजन कर गर्व से फूला नहीं समा रहा था उसी नारी के समाज में नारी की स्थिति सम्मानजनक नहीं है जो कि एक बदलते समय के साथ होनी चाहिए । पुरुष प्रधान समाज में आज भी जब महिलाओं के हक अधिकार और सम्मान की बात होती है तो वह पीछे क्यों हो जाता है सबसे बड़ी बात यह है कि इस दौर में महिलाएं भी शिक्षा की कमी की वजह से अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं अगर एकाध जागरूक महिला कदम भी उठाए तो उसे निराशा ही हाथ लगती है। ज्यादातर समाज की महिलाओं को अपने से जुड़े कानूनों अपने अधिकारों तक का नहीं पता तो समाज तरक्की कैसे कर सकता है। जानकारी हुआ जागरूकता के अभाव में महिलाएं प्रताड़ना सहने को मजबूर होती हैं इसके लिए सिर्फ पुरुष ही नहीं स्वयं महिला भी जिम्मेदार हैं।
महिलाओं में सम्मान की बात मैं कर रही हूं इसका मतलब यह नहीं है कि हमें विशेषाधिकार चाहिए। समाज में महिलाओं को समझ आ जाए उन्हें वह अधिकार दिए जाएं जिसकी वह अधिकारी है ।अगर महिलाएं शिक्षित होंगी तो वे खुद से जुड़े मुद्दों को पहचानेंगीं । समाज की तरक्की में स्त्री और पुरुष दोनों की ही बराबर की भागीदारी होनी चाहिए आज ही अपने समाज में पुरुष को री शान की खातिर महिलाओं को कमजोर ही समझता है उनकी छुपी हुई प्रतिभा को नहीं पहचान पाता अगर उन्हें समझा जाए तो महिलाएं आत्मविश्वास से भरपूर हो समाज को और समृद्ध कर सकती हैं जब पुरुष और महिला एक ही सिक्के के दो पहलू हैं तो उन्हें समाज के विकास में योगदान के लिए भी समान अवसर दिया जाए इस जिम्मेदारी को वे समझे और एक नए प्रगतिशील समाज की अभियान को बढ़ावा दें। आज पुरुषों को समय के साथ-साथ अपनी सोच को भी बदलना होगा। हमारे संविधान ने जब स्त्री और पुरुष को समान अधिकार दिए हैं तो हम कौन होते हैं उनसे उनका अधिकार छीनने वाले।
समाज की के कुछ लोगों की पुरानी सोच के कारण ही महिला काफी पीछे नजर आते हैं। हम जयंती मनाते हैं लेकिन वास्तविक रूप से माता अहिल्याबाई के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा नहीं लेते।हमें उनकी दी हुई विरासत व परंपरा को आगे बढ़ा कर उनके आदर्शों पर चलना ही होगा।महिलाओं को एक मंच पर लाकर उन्हें जागरुक करना होगा ।उनकी सोच को बदलना होगा।माता अहिल्याबाई जी के ससुर महाराजा मल्हावराव होल्कर ने सदैव उन्हें अपनी बेटी समझा बेटे के सारे अधिकार दिए।अगर माताअहिल्याबाई के पैरों में भी उनके परिवार ने बेड़ियां डाली होती उनकी ऊर्जा शक्ति व असीम क्षमता को पहचाना नहीं होता तो क्या संपूर्ण विश्व को आज उन पर गर्व होता। उन्होंने ऐसे समाज में भी शिक्षा के महत्व को समझा शासन की बागडोर स्वयं संभाली सती प्रथा तक का विरोध कर साहस का परिचय दिया जब नारी की स्थिति काफी दयनीय थी उस समय नारी कुरीतियों में जकड़ी थी।
आज भी समाज के कुछ लोगों की स्त्री के प्रति घ्रणित विचारधारा ने उसका क्षेत्र केवल घर की चारदीवारी तक क्यों सीमित कर रखा है? विवशता की बेड़ियों में जकड़ी मेरी माता बहनों को सामाजिक कुरीतियों के कारण उनके अधिकारों से क्यों वंचित किया जा रहा है?महिलाओं को घर के साथ-साथ अगर समाज की भी कुछ जिम्मेदारी दी जाए तो उनमें एक नई चेतना का विकास होगा और समाज के प्रति नव चेतना एवं जागृति की भावना उनमें विकसित होगी। तभी हमारा समाज प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकेगा।यह बदलाव हमें खुद से ही करना होगा।
धन्यवाद ।
✍️....पद्मावती बघेल
आगरा ।
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