
धरती माता को वीटो पाॅवर की कैद तथा परमाणु शस्त्रों की होड़ से
मुक्त कराने के लिये ‘शहीद-ए-आजम भगत सिंह’ जैसे क्रान्तिकारी जज्बे की जरूरत है!
- प्रदीप कुमार सिंह, लखनऊ
अंग्रेजी साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के युग में भारत सहित विश्व के लगभग 54 देेश अंग्रेजी शासन के उपनिवेश थे? देशों में अंग्रेजी राज के प्रति नफरत और आक्रोश फैला हुआ था। उपनिवेशवाद में यूरोपीय देशों ने प्राकृतिक तथा मानव संसाधनों का अन्यायपूर्ण दोहन करके ‘सर्वोच्च आर्थिक लाभ’ प्राप्त किया था। उपनिवेशवाद का यूरोप का मुख्य केन्द्र इंग्लैण्ड रहा है। उपनिवेशवाद का तात्पर्य है आर्थिक दृष्टि से विकसित देशों के द्वारा अविकसित देशों का शोषण। अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की अन्यायपूर्ण नीति के कारण अंग्रेज के गुलाम 54 देशों के मूल निवासी गरीबी, बीमारी, अशिक्षा तथा गुलामी से भरा अपमानजनक जीवन जी रहे थे।
अंग्रेज इन गुलाम देशों का दोहन तथा शोषण करके अपने देश इंग्लैण्ड को समृद्ध कर रहे थे। भारत में अंग्रेजांे के प्रति आक्रोश चरम सीमा पर था। स्वाधीनता आन्दोलन के लिये पूरे राष्ट्र में एक दबी हुई चिगंारी धधक रही थी। ऐसे विकट समय में अमर बलिदानी, भारत माँ के वीर, क्रान्तिकारी सपूत, अप्रतिम साहस के पर्याय शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह ने भारत की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति तथा स्वाभिमान को पुनः स्थापित करना चाहते थे। भगत सिंह ने मातृभूमि की आजादी के लिये खुद के प्राणों को न्योछावर कर दिया यही बलिदान आगे चल कर आजादी का सुप्रभात बना।
भगत सिंह की देशभक्ति अंग्रेजों के खिलाफ हिंसा विरोधी भयंकर विस्फोटों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उनके पास विचार और बुद्धि की एक अपूर्व प्रतिभा भी थी, जिससे वे सांप्रदायिक तर्ज पर भारत के विभाजन का पूर्वानुमान लगा सकते थे, उस समय के बहुत से प्रमुख नेता भी इस बात का अनुमान लगाने में असमर्थ थे। धर्म से ज्यादा देश के हितों को ध्यान में रखते हुए परिपक्व और तर्कसंगत विचार उनके एक प्रमुख गुण को प्रदर्शित करते थे। उनकी शैक्षिक योग्यता इस तथ्य को प्रदर्शित करती है कि वह केवल उन्मादी जनांदोलनों के जनक ही नहीं थे, बल्कि अपनी राय और विचारों को अच्छी तरह से सोच-समझ कर प्रकट करते थे।
सरदार भगतसिंह का नाम अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप से लिया जाता है। भगतसिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा गांव (जो अभी पाकिस्तान में है) के एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ था, जिसका अनुकूल प्रभाव उन पर पड़ा था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।
यह एक सिख परिवार था जिसने आर्य समाज के विचार को अपना लिया था। उनके परिवार पर आर्य समाज व महर्षि दयानन्द की विचारधारा का गहरा प्रभाव था। भगत सिंह के जन्म के समय उनके पिता सरदार किशन सिंह एवं उनके दो चाचा अजीत सिंह तथा स्वर्ण सिंह अंग्रेजों के खिलाफ होने के कारण जेल में बंद थे। जिस दिन भगत सिंह पैदा हुए उनके पिता एवं चाचा को जेल से रिहा किया गया। इस शुभ घड़ी के अवसर पर भगत सिंह के घर में खुशी और भी बढ़ गई थी। छोटी उम्र में शादी से बचने के लिये घर से भाग गये और कानपुर चले गये। यहां वह गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आये और एक क्रांतिकारी के रूप में अपना पहला पाठ सीखा।
वह समाजवाद की ओर आकर्षित होने लगे थे। भारत के शुरूआती मार्क्सवादियों में से एक माने जाने वाले भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के नेताओं और संस्थापकों में से एक थे। 1928 में उनकी मुलाकात एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के साथ हुई। भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद दोनों क्रांतिकारियों ने ‘हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ बनाने के लिए संगठन तैयार किया।
भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक थे। क्रांति से उनका आशय था कि वर्तमान व्यवस्था अन्याय पर आधारित है, वह बदलना चाहिए। भगत सिंह ने यूरोपीय क्रांतिकारी आंदोलनों का अध्ययन किया। जब 1916 में लाहौर के डी.ए.वी. स्कूल में पढ़ रहे थे, तब युवा भगत सिंह कुछ प्रसिद्ध राजनीतिक नेताओं, जैसे लाला लाजपत राय और रासबिहारी बोस के संपर्क में आये। 1919 में जब जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ, भगत सिंह केवल बारह साल के थे। इस नरसंहार ने उन्हें अंदर तक हिला दिया। उनके अंग्रेजों को भारत से निकालने के संकल्प को और दृढ़ कर दिया।
1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के विरूद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्नान किया, तब भगत सिंह ने स्कूल छोड़ दिया और सक्रिय रूप से इस आंदोलन में भाग लिया। 1922 में जब गांधी जी ने चैरीचैरा में हुई हिंसक घटना के विरोध में अपना आंदोलन रद्द कर दिया, भगत सिंह अत्यधिक निराश हुए। अहिंसा में उनका विश्वास कमजोर पड़ गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि स्वतंत्रता प्राप्त करने का सशस्त्र विद्रोह ही एकमात्र विकल्प है। अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिये भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल काॅलेज में दाखिला ले लिया। काॅलेज क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था। यहां भगवतीचरण, सुखदेव और कई दूसरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आये।
1922 में जब गांधी जी ने चैरीचैरा में हुई हिंसक घटना के विरोध में अपना आंदोलन रद्द कर दिया, तो इससे भगत सिंह अत्यधिक निराश हुए। वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ गये। अब वह हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। उन्होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। 9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। इस घटना को अंजाम भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने साथ मिलकर अंजाम दिया था। अंग्रेज चन्द्रशेखर आजाद तथा भगत सिंह को तो पकड़ नहीं सके लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां एवं रोशन सिंह को 19 दिसम्बर 1927 को तथा उससे 2 दिन पूर्व 17 दिसम्बर को राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी को फाँसी पर लटका कर मार दिया गया था। काकोरी काण्ड में 4 क्रान्तिकारियों को फाँसी और 16 को कड़ी कैद की सजा हो गयी।
पूरे देश में 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध तथा प्रदर्शन हो रहे थे। लाहौर में अंग्रेजांे की लाठी से चोट खाकर लाला लाजपत राय जी की मृत्यु हो गयी। भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए ब्रिटिश डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल स्काॅट को गोली मारकर मारने का दृढ़ निश्चय किया। उनके साथी ने स्काॅट को पहचानने में गलती की और असिस्टेंट सुप्रिंटेंडेंट सैण्डर्स को मार गिराया। राजगुरू ने आगे बढ़कर उस पर पहला फायर किया। उसके बाद भगत सिंह और सुखदेव दोनों ने उस पर अपने पिस्तौल खाली कर दिये।
भारतीयों के असंतोष के मूल कारण को समझने के बजाय अंग्रेजी शासन ने डिफेंस आॅफ इंडिया एक्ट के अंतर्गत पुलिस को और अधिक शक्तियां दे दीं। यह एक्ट केंद्रीय विधानसभा में लाया गया, जहां पर एक मत से गिर गया। इसके बावजूद इसे एक अध्यादेश के रूप में लाया गया। भगत सिंह को केंद्रीय विधानसभा में बम फेंकने की जिम्मेदारी सौंपी गई, जहां इस अध्यादेश को पास करने के लिये बैठक होने वाली थी। यह सावधानीपूर्वक तथा दूरदर्शीपूर्ण बनाई गई योजना थी। इस योजना का उद्देश्य भारतीयों द्वारा अंग्रेजों के दमन को अब और नहीं सहा जाएगा इस बात की ओर अंग्रेजी सरकार का ध्यान आकर्षित करना था। यह निर्णय लिया गया कि बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त अपनी गिरफ्तारी दे देंगे। इस साहसिक घटना का असर सारे देश में होेगा।
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को कंेद्रीय विधानसभा के हाॅल में बम फेंका और जानबूझकर खुद को गिरफ्तारी करवाया। उस गिरफ्तारी में भगत सिंह के पास से लाहौर में सैण्डर्स की हत्या के समय उपयोग की पिस्तौल बरामद हुई थी। मुकदमे के दौरान भगतसिंह ने बचाव के लिये वकील लेने से इंकार कर दिया। जेल में भगत सिंह ने करीब दो साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख व परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं। अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेजी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था मैं नास्तिक क्यों हूं? जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे।
7 अक्टूबर, 1930 को एक विशेष अदालत द्वारा भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को लाहौर मंे अंगे्रज पुलिस अफसर की हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई गयी। भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च, 1931 को निश्चित समय से कुछ घण्टे पूर्व रात्रि में ही फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया। ये तीनों आजादी के मतवाले इंकलाब जिन्दाबाद तथा भारत माता की जी के जोशीले नारे लगाते हुए लाहौर की जेल में फांसी के फंदे पर चढ़ गये। फाँसी की सजा सुनाये जाने पर चन्द्रशेखर आजाद काफी आहत हुए। आजाद ने मृत्यु दण्ड पाये तीनों महान क्रान्तिकारियों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया। तब आजाद ने संकल्प लिया था कि वह कभी ब्रिटिश पुलिस द्वारा कभी जिन्दा पकड़े नहीं जायेंगे।
भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशील विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक तथा पत्रकार थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का गहरा अध्ययन किया था। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगत सिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने ‘अकाली’ और ‘कीति’ दो अखबारों का संपादन भी किया।
21वीं सदी के आपसी परामर्श के युग में विश्व का संचालन परमाणु शस्त्रों की होड़ से नहीं किया जाना चाहिए वरन् प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून से होना चाहिए। परमाणु बमों की होड़ के दुष्परिणाम के कारण आज धरती माता बारूद के ढेर पर बैठी है। संसार भर में जनता का टैक्स का पैसा वेलफेयर (जन कल्याण) में लगने की बजाय वाॅरफेयर (युद्ध की तैयारी) में लग रहा है। शक्तिशाली देशों की देखादेखी विश्व के अत्यधिक गरीब देश भी अपनी जनता की बुनियादी आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा तथा स्वास्थ्य की सुविधायें उपलब्ध करने की बजाय अपने रक्षा बजट प्रतिवर्ष बढ़ा रहे हैं।
हमारा मानना है कि जगत गुरू भारत ही अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के बलबुते सारे विश्व को बचा सकता है। इसके लिए हमें प्रत्येक बच्चे के मस्तिष्क में बचपन से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति डालने के साथ ही उन्हें यह शिक्षा देनी होगी कि हम सब एक ही परमपिता परमात्मा की संतानें हैं और हमारा धर्म है - सारी मानवजाति की भलाई। द्वितीय विश्व युद्ध विभाषिका से घबराकर अमेरिका की पहल से वर्ष 24 अक्टूबर 1945 को विश्व की शान्ति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई थी। संकुचित राष्ट्रीयता के कारण 20वीं सदी मानव सभ्यता के इतिहास की सबसे खूनी सदी रही है। इस सदी में प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्धों, दो देशों के बीच होने वाले अनेक युद्धों तथा हिरोशिमा और नागासाकी जैसी दुखदायी घटनाएं हुई थी। मानव जाति ने 20वीं सदी के खूनी इतिहास से कोई सबक नहीं सीखा। संयुक्त राष्ट्र संघ की उपस्थिति में हजारों की संख्या में कई गुना अधिक शक्तिशाली परमाणु बमों का निर्माण किया जा चुका है। 21वीं सदी में परमाणु युद्ध लड़े तो जा सकते हैं लेकिन जीते नहीं जा सकते?
शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह का आजादी का अभियान 15 अगस्त 1947 में आजाद भारत के रूप में पूरा हो चुका है। भारत के आजाद होते ही विश्व के 54 देशों ने अपने यहां से अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेका था। भगत सिंह ने अपने बलिदान द्वारा हमें सीख दी थी कि आजादी जीवन है तथा गुलामी मृत्यु है। देश स्तर पर तो लोकतंत्र तथा कानून का राज है लेकिन विश्व स्तर पर लोकतंत्र न होने के कारण जंगल राज है।
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय ही अलोकतांत्रिक तरीके से सबसे ज्यादा परमाणु हथियारों से लेश अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन तथा फ्रान्स को वीटो पाॅवर (विशेषाधिकार) दे दिया गया। इन पांच देशों द्वारा अपनी मर्जी के अनुसार विश्व को चलाया जा रहा है। भगत सिंह जैसी महान क्रान्तिकारी आत्माओं के प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि यह होगी कि विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक तथा युवा भारत को अब वीटो पाॅवररहित एक लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था (विश्व संसद) के गठन की पहल पूरी दृढ़ता के साथ करना चाहिए। विश्व स्तर पर लोकतंत्र तथा कानून के राज को लाने के इस बड़े दायित्व को हमें समय रहते निभाना चाहिए।
पता- बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2, एल्डिको, रायबरेली रोड,
लखनऊ-226025 मो0 9839423719
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