कंस के क्रूर और मानवीय संवेदनाओं को दिखाता नाटक कंसा "कथा एक कंस की"

 

कंस की क्रूर और मानवीय  संवेदनाओं पर केंद्रित नाटक कंसा  "कथा एक कंस की" का मंचन, संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमती नगर लखनऊ में मोहिनी फाउंडेशन एवं फिक्सल फ़िल्म के सहयोग से संस्था विजय "बेला एक कदम खुशियों की ओर" के कलाकारों ने किया दया प्रकाश सिन्हा जी द्वारा लिखित इस नाटक का निर्देशन चन्द्रभाष सिंह द्वारा किया गया। कंस को लोग निरंकुश शासक के रूप में जानते हैं, लेकिन उसके अतिरिक्त संगीत प्रेम और कोमल हृदय से लोग अपरिचित हैं, कंस के इन्हीं पक्षों को जब नाट्य कलाकारों ने मंच पर प्रस्तुत किया तो दर्शकों ने खूब सराहा, 2 घंटे से अधिक अवधि के इस नाटक को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला। नाटक में कंस के पिता उग्रसेन उसे योद्धा बनाना चाहते हैं वह कंस से पूछते हैं कि तुम्हें कौन सा  शस्त्र  सर्वाधिक पसंद है, तब वह कहता है वीडा, कंस का जवाब सुनने के बाद उग्रसेन अत्यधिक क्रोधित होते हैं और उसे स्त्रैण, क्लेव, कापुरुष आदि नामों से संबोधित करते हैं। धीरे-धीरे कंस का बर्ताव बदलता जाता है और वह एक क्रूर अत्याचारी शासक बनता जाता है। सत्ता पाने के लिए अपने पिता और अपने प्राणों से प्यारी बहन को भी कारागार में डाल देता है , उसे सत्ता जाने का भय सताने लगता है , किसी पर भी विश्वास नहीं कर पाता और धीरे-धीरे सभी उसे छोड़ कर चले जाते हैं। मंच पर चंद्रभाष सिंह, गिरिराज किशोर शर्मा, जुही कुमारी, ज्योति, निहारिका, अवनि, ब्रजेश कुमार, बसंत मिश्रा, प्रणव श्रीवास्तव, कोमल, सौरभ , आयुष, सुहैल, श्री ऐश, वर्षा,अजय, ओमकार, सुंदरम, तारा उप्रेती, किसलय, शुभम, जय गुप्ता, अंकुश, विशाल, ध्रुव कुमार रंजीत, अमित आदि ने बेहतरीन अभिनय किया।

नाटक के मुख्य संवाद-
 सत्ता अविश्वास के सहारे खड़ी होती है विश्वास के नहीं।
मरे हुए पशुओं को मारने वाला मनुष्य बर्बर पशु के समान है।
 पुरुष वही है जो हत्या करें रक्त पात में हर्षित हो हिंसा की हुंकार में जीवन संगीत ढूंढे।

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