
आदरणीय बन्धुओं,
हमारा मानना है कि यदि हमें धरती पर शैतानी सभ्यता की जगह वसुधैव कुटुम्बकम् - जय जगत अर्थात आध्यात्मिक सभ्यता स्थापित करनी है तो इसके लिए शिक्षा के द्वारा तीन क्षेत्रों को तराशना होगा।
पहला क्षेत्र 21वीं सदी के इस युग के अनुरूप ‘शिक्षा’ होनी चाहिए (अर्थात शिक्षा केवल भौतिक नहीं वरन् भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों की संतुलित शिक्षा),
दूसरा क्षेत्र धर्म के मायने साधारणतया समझा जाता है कि मेरा धर्म, तेरा धर्म, उसका धर्म। धर्म के मायने- ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है।
तीसरा क्षेत्र सारे विश्व में कानूनविहीनता बढ़ रही है। बच्चों को बचपन से कानून पालक तथा न्यायप्रिय बनने की सीख देनी चाहिए। हम सब संसारवासी कानून को तोड़ने वाले बनते जा रहे हैं। समाज को व्यवस्थित देखना है तो कानून का पालन होना चाहिए।
सामाजिक शिक्षा के द्वारा बालक में परिवार तथा समाज के प्रति संवेदनशीलता विकसित की जानी चाहिए। पारिवारिक एकता इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विश्व के बच्चों को रंग भेद, धर्म भेद, ऊँच-नीच तथा जात-पात के बन्धन से बचाना चाहिये।
भवदीय
प्रदीपजी पाल, वरिष्ठ परिजन
वाट्सअप 9839423719
www. pal world times.com
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