
- प्रदीपजी पाल, वरिष्ठ परिजन
(1) पारिवारिक एकता इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। परिवार में माता-पिता को तथा स्कूल में टीचर्स को पारिवारिक एकता के महत्व को बच्चों को भली-भांति बताना चाहिए। जिस परिवार में घर के सभी सदस्य मिल-जुलकर प्रार्थना करते हैं उस परिवार में एकता, शान्ति तथा समृद्धि आती है। परिवार के ईश्वरीय प्यार तथा सहकार से भरे वातावरण में बच्चे एकाग्रता से मन लगाकर पढ़ते हैं। प्यार तथा सहकार से भरापूरा परिवार ही धरती का स्वर्ग है। पारिवारिक एकता से ही भारतीय संस्कृति के आदर्श वसुधा को कुटुम्ब बनाने की परिकल्पना साकार होगी।
(2) शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसके उपयोग से विश्व का बदला जा सकता है। 21वीं सदी का विश्व वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) के व्यापक रूप में बदलाव चाहता है। भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेगा। इसी के साथ मानव सभ्यता की करोड़ों वर्षों पूर्व गुफाओं से शुरू हुई विकास यात्रा का अन्तिम लक्ष्य विश्व में आध्यात्मिक सभ्यता अर्थात धरती पर स्वर्ग के अवतरण के साथ पूरा होगा।
(3) विश्व के प्रत्येक परिवार की समृद्धि के लिए विश्व के प्रत्येक वोटर को वोटरशिप कानून बनाकर जीने के लिए एक निश्चित धनराशि प्रत्येक माह उपलब्ध कराना होगा। साथ ही शान्ति के लिए विश्व सरकार का गठन करना होगा। अतीत में जैसे हमने प्रथम विश्व युद्ध के चलते लीग आफ नेशन्स बनाया तथा द्वितीय विश्व युद्ध से पीड़ित होकर संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया था। अब समझदारी से तृतीय विश्व युद्ध होने के पूर्व लोकतांत्रिक मूल्यों पर
आधारित विश्व सरकार का गठन कर लेना चाहिए। विश्व सुरक्षित होगा तो हमारा देश, हमारा प्रदेश, हमारा जिला, हमारा गांव तथा हमारा घर सुरक्षित रहेगा। यह प्यारा विश्व भी हमारा है पराया नहीं है।
(4) वर्तमान वैश्विक उथल-पुथल की विषम परिस्थितियों में राष्ट्र पिता के स्थान पर अब विश्व पिता की आवश्यकता है। मानव जाति को उसे पूरे मनोयोग से समय रहते ढूंढ़कर विश्व सरकार रूपी परिवार के मुखिया का दायित्व सांैपना होगा। अभी नहीं तो फिर कभी नहीं।
(5) हे आत्मा के पुत्र, मनुष्यों को भेड़ों का एक समूह समझ, जिसकी रक्षा के लिए एक गड़रिया की आवश्कता होती है। एक सच्चा गड़रिया अपनी जान की बाजी भी लगाकर भेड़ियों से अपनी भेड़ों की रक्षा करता है। - पवित्र पुस्तक से
(6) जिसने ईश्वर के प्यार और सहकार का सुस्वाद चख लिया है वह इसका सौदा सम्पूर्ण पृथ्वी की धन-सम्पदा से भी नहीं करेगा। हमें अपने प्रत्येक मानवीय कार्य को रोजाना अपनी पहचान बनाना है, न कि कोरे शब्दों को। ऐसे कर्म करना है जो शुद्ध और पवित्र हो। जीवन का एकमात्र उद्देश्य ईमानदारी तथा सच्चाई से अपनी नौकरी या व्यवसाय करके अपनी आत्मा का विकास करना है।
(7) हे आत्मा के पुत्र! एक शुद्ध, दयालु तथा प्रकाशित हृदय धारण कर ताकि प्राचीन, अमिट तथा श्रेष्ठता का संसार तेरा हो। मैं ईश्वर पुत्र हूं। संसार की समस्त धन-सम्पदा मेरी बपौती है। मैं ईश्वरीय कार्य के लिए इनका सदुपयोग करूंगा। ईश्वरीय कार्य घाटे का सौदा नहीं है।
Pradeep ji Pal
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