
11 सितम्बर - मानव सभ्यता के इतिहास में यह एक बड़ी सुखद तथा
उसी के साथ ही साथ बड़ी दुखद तिथि भी है!
धरती को मानव निर्मित युद्धों तथा आतंकवाद से पूरी तरह से
मुक्त कराना ही दिवंगत तथा पीड़ितों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी!
अध्यात्म, विज्ञान तथा आर्थिक समन्वय से विश्व की समस्याओं का समाधान होगा!
- प्रदीपजी पाल, लेखक, लखनऊ
आज से 128 साल पहले 11 सितम्बर 1893 को अमेरिका के शिकागो में स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद में एक ऐतिहासिक भाषण दिया था। इसके अलावा 20 साल पूर्व 11 सितम्बर 2001 में न्यूयार्क के वल्र्ड ट्रेड सेन्टर पर आतंकवादी हमला हुआ था। जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। भारत सहित विश्व को धार्मिक अज्ञानता, गरीबी तथा अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने के संकल्प के साथ 1893 में स्वामी विवेकानंद शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिका गए थे। इस ऐतिहासिक भाषण का सार यह था कि धर्म एक है, ईश्वर एक है तथा मानव जाति एक है।
स्वामी जी ने भाषण की शुरूआत में कहा था - मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों! इन आत्मीयता तथा प्रेम से भरे शब्दों को सुनकर वहां मौजूद लगभग 7 हजार लोगों ने करीब 2 मिनट तक स्वामी विवेकानंद के लिए खड़े होकर तालियां बजाई थीं....और उनका अभिवादन किया था। स्वामी जी ने आगे कहा, कि वो एक ऐसे धर्म से हैं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। उन्होंने विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करने की बात कही थी। भारत का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि उन्हें गर्व है कि वह एक ऐसे देश से हैं, जिसने इस पृथ्वी के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। 126 साल पहले स्वामी विवेकानंद ने सांप्रदायिकता और कट्टरता के प्रति भी दुनिया को आगाह करते हुए कहा था कि कितनी बार ही ये धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता।
अध्यात्म एवं विज्ञान में समन्वय एवं आर्थिक समृद्धि के प्रबल समर्थक विवेकानंद जी केवल भारत के ही गुरू नहीं वरन् वह जगत गुरू के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व करने की उपयुक्त योग्यता रखते थे उन्होंने अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस से विभिन्न धर्मों के सारभौमिक सत्य को आत्मसात किया था। नवयुग का नवीन दर्शन और नवीन विज्ञान है - वैज्ञानिक अध्यात्म। स्वामी जी का मानना था कि अध्यात्म, विज्ञान तथा आर्थिक समन्वय के विचारों में विश्व की सभी समस्याओं के समाधान निहित हैं!
11 सितम्बर 1906 में युग पुरूष महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने अहिंसा आंदोलन को ‘सत्याग्रह‘ का नाम दिया था। आगे चलकर दुनिया ने कहा कि हमने एक मोहन को चक्रधारी के विराट रूप में तथा दूसरे मोहन को चरखाधारी के रूप में दर्शन किये हैं। ‘सत्याग्रह‘ के इस सफल प्रयोग ने कुछ वर्षों पश्चात भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाई थी। भारत की आजादी के बाद ‘सत्याग्रह‘ की इस आंधी में 54 देशों ने अंग्रेजी शासन को अपने-अपने देश से उखाड़ फेका। 11 सितम्बर 1906 में दक्षिण अफ्रीका सरकार ने भारतीयों के पंजीकरण के लिए एक अपमानजनक अध्यादेश जारी किया था। इस समय गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में ही थे। यह अध्यादेश गांधी जी व वहां पर रहने वाले अन्य भारतीयों को मंजूर नहीं था। सितंबर 1906 में जोहन्सबर्ग में गांधी जी के नेतृत्व में एक विरोध सभा का आयोजन हुआ। गांधी जी ने बिना किसी हिंसा के दक्षिण अफ्रीका में वहां के सुरक्षाकर्मियों के सामने अध्यादेश को आग के हवाले कर दिया। इस पर गांधी जी को लाठी चार्ज भी झेलना पड़ा लेकिन वह पीछे नहीं हटे।
11 सितम्बर 1895 को भूदान, डाकू समर्पण तथा जय जगत का वैश्विक नारा देने वाले आचार्य विनोबा भावे का जन्म हुआ था। स्वामी विवेकानंद के सहनशीलता तथा सर्व-धर्म समभाव के विचार को गांधी जी तथा विनोबा जी ने आगे बढ़ाया। वे अपने आश्रम में सर्व-धर्म प्रार्थना करते थे। इसके अलावा सर्वोदय, श्रम दान, अन्त्योदय कार्यक्रमों के द्वारा भारत की शोषित, पीड़ित जनता में स्वाभिमान का भाव जगाकर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का ऐतिहासिक काम विनोबाजी ने आरंभ किया था। विनोबाजी की पदयात्राएं आध्यात्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों से ओतप्रोत होती थी। वे इस बात के लिए सत्त क्रियाशील रहे कि समाज में संघर्ष को टाला जाए। जो साधन-सम्पन्न हैं वे साधनहीनों को अपनी सम्पत्ति का समुचित हिस्सा स्वेच्छा से ऐेसे लोगों में बांट दें जो उसे प्राकृतिक तथा मानवीय आधार पर प्राप्त करने के असली हकदार हैं।
11 सितंबर 2001 के हमले अमेरिका पर अल-कायदा द्वारा समन्वित आत्मघाती हमलों की एक श्रंृखला थी। उस दिन सबेरे, 19 अल कायदा आतंकवादियों ने चार वाणिज्यिक यात्री जेट वायुयानों का अपहरण कर लिया। अपहरणकर्ताओं ने जानबूझकर उनमें से दो विमानों को वल्र्ड ट्रेड सेंटर, न्यूयार्क शहर के ट्विन टावर्स के साथ टकरा दिया, जिससे विमानों पर सवार सभी लोग तथा भवनों के अंदर काम करने वाले अन्य अनेक लोग भी मारे गए। दोनों भवन दो घंटे के अंदर ढह गए, पास की इमारतें नष्ट हो गईं और अन्य क्षतिग्रस्त हुईं।
अपहरणकर्ताओं ने तीसरे विमान को वाशिंगटन डी.सी. के बाहर आर्लिंगटन, वर्जीनिया में पेंटागन में टकरा दिया। अपहरणकर्ताओं द्वारा वाशिंगटन डी.सी. की ओर पुनर्निर्देशित किए गए चैथे विमान के कुछ यात्रियों एवं उड़ान चालक दल द्वारा विमान का नियंत्रण फिर से लेने के प्रयास के बाद, विमान ग्रामीण पेंसिल्वेनिया में शैंक्सविले के पास एक खेत में जा टकराया। किसी भी उड़ान से कोई भी जीवित नहीं बचा। इन हमलों में अनेक देशों के लगभग 3,000 से अधिक बेकसूर लोग तथा सभी 19 अपहरणकर्ता मारे गए।
संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्कालीन महासचिव डा. कोफी अन्नान ने 20वीं सदी को मानव सभ्यता के इतिहास की सबसे खूनी सदी कहा था। 20वीं सदी की शिक्षा ने सारे विश्व में संकुचित राष्ट्रीयता पैदा की थी जिसके दुखदायी परिणाम दो विश्व युद्धों, हिरोशिमा व नाकासाकी का महाविनाश तथा राष्ट्रों के बीच अनेक युद्धों के रूप में सामने आ चुके हैं। किसी महापुरूष ने कहा है कि जो व्यक्ति या समुदाय अपने इतिहास से सबक नहीं सीखता, वह स्वयं तो नष्ट होता है, साथ ही अपने समुदाय को बरबाद कर देता है। स्टाॅकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार वर्तमान में विश्व के नौ देशों ने ऐसे परमाणु हथियार विकसित कर लिए हैं जिनसे मिनटों में यह दुनिया खत्म हो जाए।
ये नौ देश हैं- अमेरिका (7,300 परमाणु बम), रूस (8,000 परमाणु बम), ब्रिटेन (225 परमाणु बम), फ्रांस (300 परमाणु बम), चीन (250 परमाणु बम), भारत (110 परमाणु बम), पाकिस्तान (120 परमाणु बम), इजरायल (80 परमाणु बम ) और उत्तर कोरिया (60 परमाणु बम)। इन 9 देशों के पास कुल मिलाकर 16,445 परमाणु हथियार हैं। बेशक स्टार्ट समझौते के तहत रूस और अमेरिका ने अपने भंडार घटाए हैं, मगर तैयार परमाणु हथियारों का 93 फीसदी जखीरा आज भी इन्हीं दोनों देशों के पास है। यह इस बात जीता जागता उदाहरण कि मानव जाति ने भौतिक जगत अर्थात विज्ञान तथा तकनीकी में ऐतिहासिक विकास किया है लेकिन हमने अपने मात्र 100 साल पीछे सबसे खूनी सदी के इतिहास से कोई सबक नहीं सीखने के कारण परमाणु बमों का इस नीली सुन्दर धरती तथा उस पर पल रहे जीवन को समाप्त करने के लिए परमाणु बमों का विशाल जखीरा एकत्रित कर लिया है।
अब आतंकवाद किसी एक देश की नहीं वरन् सारे विश्व की समस्या है। फिर चाहे अमरीका और जर्मनी जैसे पश्चिमी देश हों, या फिर भारत जैसे विकासशील देश आंतकवाद से सभी जूझ रहे हैं। अगर कोई सरकार वास्तव में आतंक विरोधी नीति बनाना चाहती है, तो उसे अपने कुछ नागरिकों द्वारा अनुभव किये गये अन्यायों और शिकायतों को समझने की दिशा में संसाधन लगाना चाहिए, जिसका इस्तेमाल करके आतंकी समूह असंतुष्ट विशेषकर युवा पीढ़ी को हिंसक विचारधाराओं की ओर आकर्षित करते हैं।
प्रतिवर्ष विश्व के 155 देशों का रक्षा बजट बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। इस पर सभी देशों को मिल-बैठकर विचार करना चाहिए। आतंकवाद तथा पड़ोसी देशों से देश को सुरक्षित करने के लिए शान्ति प्रिय देश भारत को भी अपना रक्षा बजट प्रतिवर्ष बढ़ाना पड़ रहा है। भारत का रक्षा बजट दुनिया में आठवें नम्बर पर है। हम जैसे गरीब देश रक्षा बजट के मामले में जर्मनी आदि देशों से आगे हैं। युद्ध तथा युद्धों की तैयारी में हजारों करोड़ डालर विश्व में प्रतिदिन खर्च हो रहे हैं। शान्ति पर कुछ भी खर्चा नहीं आता है। युद्धों तथा युद्धों की तैयारी से पैसा बचाकर इस पैसे से संसार के प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा, सुरक्षा, चिकित्सा, रोटी, कपड़ा और मकान की अच्छी व्यवस्था की जा सकती है। साथ ही विश्व के सभी वोटरों को यूनिवर्सल बेसिक इनकम से आगे बढ़कर वोटरशिप के तहत प्रतिमाह कुछ धनराशि दी जा सकती है। ऐसा करके हम सारे विश्व को आर्थिक आजादी का वास्तविक अहसास करा सकेंगे।
जम्मू एवं कश्मीर के पुलवामा आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी लेने वाले संगठन जैश-ए -मोहम्मद के मुखिया अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी मसूद अजहर को चीन ने बार-बार बचा रहा था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के चार स्थायी सदस्यों अमेरिका, रूस, ब्रिटेन तथा फ्रान्स ने मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी करार देने पर सहमति जतायी जब कि चीन ने वीटो लगाकर पहले विरोध दर्ज किया था। चीन ने भारत के खिलाफ इस तरह चैथी बार वीटो पाॅवर का इस्तेमाल किया था। बाद में अंतर्राष्ट्रीय दबाव चलते चीन को मसूद अजहर को अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी स्वीकार करना पड़ा। 19वीं और 20वीं सदी की कानूनों, सोच व साधनों से हम 21वीं सदी की चुनौतियों से लड़ना चाहते हैं। वर्तमान समय की आवश्यकता है कि हमें अपनी राष्ट्रीय तथा वैश्विक लोकतांत्रिक संस्थाओं को 21वीं सदी चुनौतियों के अनुकूल बनाना होगा।
संसार के प्रत्येक नागरिक द्वारा चुनी हुई विश्व सरकार, लोकतांत्रिक ढंग से गठित विश्व संसद (वीटो पाॅवर रहित) तथा प्रभावशाली विश्व न्यायालय जिसके निर्णय संसार के प्रत्येक व्यक्ति पर समान रूप से लागू हो! इस दिशा में पूरे साहस के साथ कदम उठाकर हम स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा भावे जैसे महापुरूषों के त्याग और बलिदान के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं। आज यदि ये महापुरूष शरीर से जीवित होते तो निश्चित रूप से ही विश्व को युद्धों तथा आतंकवाद से मुक्त कराने के लिए पूरे मनोयोग से प्रयत्न कर रहे होते। अन्त में हम विश्व युद्धों तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के कारण दिवंगत, घायलों तथा उसकी पीड़ा झेल रहे संसार भर के प्रियजनों के प्रति भी हम अपनी हार्दिक सम्वेदना प्रकट करते हैं।
लेखक का पता- बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2, एल्डिको,
रायबरेली रोड, लखनऊ-226025 मो0 9839423719
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