
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद बनाम बाध्यकारी अन्तर्राष्ट्रीय कानून
- डाॅ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल (सीएमएस), लखनऊ
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में तालिबानियों के कब्जे के साथ ही सारे विश्व के समक्ष अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया है। तालिबान ने अलोकतांत्रिक ढंग से पूरे अफगानिस्तान में शासन चलाना शुरू कर दिया है। यह सर्वमान्य लोकतंत्र शासन प्रणाली का अपमान है। यह वीभत्स दृश्य सारी मानवता के लिए अत्यन्त ही चिन्ता का विषय है। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद बुलाई गई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यू.एन.एस.सी.) की बैठक में भारत ने कहा है कि अफगानिस्तान की जमीन का उपयोग आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए। यू.एन.एस.सी. आपात बैठक में भारत के अलावा अमेरिका, रूस, चीन सहित सभी देशों ने अफगान नागरिकों की सुरक्षा का मसला उठाया। यूएन ने कहा कि अफगानिस्तान में पुरूष, महिलायें तथा बच्चे डर के साये में हैं। वहां 80 से ज्यादा देशों के लोग, राजनयिक फंसे हुए हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अगस्त माह की अध्यक्षता का महत्वपूर्ण दायित्व इस समय भारत के पास ही है। यूएनएससी की बैठक की अध्यक्षता संभालने का महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले देश के सबसे पहले व लोकप्रिय प्रधानमंत्री
श्री नरेन्द्र मोदी जी से हमारी अपील है कि वह समय रहते संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान करके विश्व संसद का गठन करने के लिए आपात बैठक बुलाये। वर्तमान समय में जो वैश्विक परिदृश्य दिखाई दे रहा है, उसमें मानव जाति का भविष्य अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के चलते लगातार असुरक्षित होता चला जा रहा है। वास्तव में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मुकाबला केवल बाध्यकारी अन्तर्राष्ट्रीय कानून बनाने वाली विश्व संसद से ही निकाला जा सकता है। जिसके अन्तर्गत एक लोकतांत्रिक विश्व सरकार तथा विश्व न्यायालय के गठन की शीघ्र आवश्यकता है।
भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति एवं सभ्यता को जिस प्रकार से सारे विश्व के समक्ष, न केवल भारत के माननीय प्रधानमंत्री के रूप में, वरन् एक परिपक्व वल्र्ड लीडर के रूप में श्री नरेन्द्र मोदी जी ने सदैव रखा है, उसके लिए श्री मोदी जी को ढेर सारी बधाइयाँ हैं। आपने विश्व के सात सौ करोड़ से अधिक लोगों के भविष्य के प्रति सदैव अपनी चिन्ता जतायी है तथा विश्व के सभी देशों को इसमें भागीदारी निभाने को प्रेरित किया है। आपने बिलकुल ठीक कहा है कि विश्व में जी-8, जी-20 आदि अनेक ग्रुप हंै लेकिन अब जी-आॅल गु्रप की आवश्यकता है और हमें यह ध्यान देना चाहिए कि हम कैसे संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रजातांत्रिक, शक्तिशाली तथा और अधिक प्रभावशाली बना सकते है।
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के लगभग 55,000 से अधिक बच्चों तथा भारत के लगभग 40 करोड़ बच्चों तथा विश्व दो अरब बच्चों तथा आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों के स्वतः निर्मित अभिभावक की हैसियत से मैं श्री मोदी जी से विश्व संसद के गठन की प्रक्रिया ‘यूरोपीय संसद’ की तरह शुरू करने की अपील करता हूँ। ‘यूरोपीय संसद’ के गठन के लिए फ्रांस के प्रधानमंत्री श्री राबर्ट शूमेन ने यूरोपीय देशों के नेताओं की एक बैठक बुलाने की पहल की थी। इस पहली बैठक में 76 यूरोपीय संसद सदस्यों ने प्रतिभाग किया जिसके परिणाम स्वरूप यूरोपीय यूनियन व 28 यूरोपीय देशों की एक ‘यूरोपीय संसद’ गठित की गई। इस यूरोपीय संसद की वजह से आज पूरे यूरोप में स्थायी एकता व शांति स्थापित है। आज यूरोपीय यूनियन में 28 यूरोपीय देश पूर्ण सदस्य राज्यों की तरह से हैं। यूरोपीय यूनियन के 18 देशों ने अपनी राष्ट्रीय मुद्रा को समाप्त कर ‘यूरो’ मुद्रा को अपनी राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में अपनाया है।
हम गर्व के साथ कह सकते है कि संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में श्री मोदी जी ने हमारे सशक्त प्रधानमंत्री, हमारे नागरिकों, हमारी संस्कृति तथा हमारी आशा तथा विश्वास का प्रतिनिधित्व किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में श्री मोदी जी के विश्वव्यापी एवं मानवीय विचारों ने सारे विश्व नेताओं के मन-मस्तिष्क में गहरा असर किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में उस अवसर पर उपस्थित सदस्य देश के प्रतिनिधि अपने-अपने देश में विश्व एकता तथा विश्व शान्ति का सन्देश लेकर गये हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् सारा ‘विश्व एक परिवार है’ की भारतीय संस्कृति के आदर्श की एक महान वल्र्ड लीडर की भूमिका श्री मोदी जी पूरे मनोयोग से निभा रहे हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का लक्ष्य सारे विश्व के लिए श्री मोदी जी ने
निर्धारित किया है। श्री मोदी जी के विचार, दर्शन तथा सपना विश्व के सभी लोगों पर अच्छा व गहरा असर डाल रहे हैं।
हम सभी जानते हैं कि 1919 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री वुडरो विल्सन ने विश्व शांति के लिए विश्व के नेताओं की एक बैठक आयोजित की, जिसके फलस्वरूप ‘लीग आॅफ नेशन्स’ की स्थापना हुई। अमेरिका के ही तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फ्रैन्कलिन रूजवेल्ट ने 1945 में विश्व के नेताओं की एक बैठक बुलाई जिसकी वजह से 24 अक्टूबर, 1945 को ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यू.एन.ओ.) की स्थापना हुई। फ्रांस के प्रधानमंत्री श्री राबर्ट शूमेन ने यूरोपीय देशों के नेताओं की एक बैठक बुलाने की पहल की। इस पहली बैठक में 76 यूरोपीय संसद सदस्यों ने प्रतिभाग किया जिसके परिणामस्वरूप यूरोपीय यूनियन व 28 यूरोपीय देशों की एक ‘यूरोपीय संसद’ गठित की गई।
विश्व के इन तीन महान नेताओं के (1) अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति श्री वुडरो विल्सन (2) अमेरिका के ही पूर्व राष्ट्रपति श्री फ्रैन्कलिन रूजवेल्ट तथा (3) फ्रांस के प्रधानमंत्री श्री राबर्ट शूमेन के बाद अब श्री मोदी जी संयुक्त राष्ट्र महासभा में तथा अन्य वैश्विक मीटिंगों में विश्व के सभी देशों के नेताओं को विश्व में शांति स्थापना के लिए एकजुट होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। हम प्रबल आशा के साथ श्री मोदी जी से निवेदन करना चाहेंगे कि वह विश्व एकता की दिशा में अगला कदम शीघ्र उठाकर विश्व के सभी देशों के शासनाध्यक्षों की एक मीटिंग दिल्ली में बुलाने की कृपा करें। जिसमें श्री मोदी जी की अगुवाई में यूरोपियन संसद की तरह एक चयनित और अधिक प्रजातांत्रिक विश्व संसद के गठन का प्रबल विचार रखा जा सके। यूरोपियन संसद का गठन आज विश्व के समक्ष सबसे अच्छा उदाहरण है, जो कि उनकी नेशनल पार्लियामेन्ट के ऊपर है। यहाँ उल्लेखनीय है कि यूरोपियन संसद का गठन बिना संबंधित देशों ने अपनी संप्रभुता में किसी प्रकार की कटौती के की है।
पूर्व काल में अनेक यूरोपियन देश एक समय एक-दूसरे के घोर शत्रु थे। मानव इतिहास में 20वीं सदी को उन्होंने खूनी सदी बना दी थी। यूरोप में अलग-अलग संस्कृति के लोग रहते हैं। इसके बावजूद उन्होंने अपने मतभेदों को भुलाकर विश्व एकता तथा विश्व शान्ति के लिए यूरोपियन संसद का गठन किया है। यूरो करेन्सी विश्व की सबसे शक्तिशाली मुद्रा है। यूरोपियन संसद को छः दशकों से अधिक वर्षों में लोकतंत्र, मानवाधिकारों के संरक्षण, आधुनिकीकरण, विकास में महत्वपूर्ण योगदान के लिए वर्ष 2012 में नोबेल पीस प्राइज से सम्मानित किया गया है। यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों के बीच आपसी युद्धों का अब किसी प्रकार का खतरा मानव जाति को नहीं है।
मेरे संयोजन में सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ वर्ष 2001 अर्थात विगत 21 वर्षों से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 पर विश्व के मुख्य न्यायाधीशों का अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन प्रति वर्ष आयोजित किया जाता है। विगत वर्ष 21वें अन्तर्राष्ट्रीय मुख्य न्यायाधीश सम्मेलन’ का आयोजन 6 से 9 नवम्बर 2020 तक कोविड-19 के चलते आॅनलाइन किया गया था, इस ऐतिहासिक सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि के रूप में भारत के माननीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने किया था। प्रतिवर्ष आयोजित इन सम्मेलनों में विश्व के विभिन्न देशों से प्रतिभाग करने पधारे मुख्य न्यायाधीशों से सीएमएस के छात्र अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं तथा उनके समाधान खोजने पर चर्चा करते हैं।
वर्ष 2001 से 2020 तक प्रतिवर्ष आयोजित विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में अब तक 136 देशों के 1329 मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश, हेड आॅफ दि स्टेट/गवर्नमेन्ट, संसद के स्पीकरों ने प्रतिभाग करके विश्व संसद, विश्व सरकार तथा वल्र्ड कोर्ट आॅफ जस्टिस के गठन को अपना सर्वसम्मति से समर्थन दिया है। प्रत्येक वर्ष के सम्मेलन के अन्तर्गत विश्व की प्रख्यात हस्तियों, न्यायविद्ों व कानूनविद्ों की गहन परिचर्चा के निष्कर्ष स्वरूप ‘लखनऊ घोषणा पत्र’ जारी किया जाता है। इस घोषणा पत्र को सभी देशों व सरकारों के प्रमुखों व मुख्य न्यायाधीशों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव तथा क्षेत्रीय संस्थाओं जैसे अफ्रीकन यूनियन, यूरोपियन यूनियन, एसियान आदि के प्रमुखों को उनके विचारार्थ और यथा संभव कार्यान्वयन हेतु भेजा जाता है।
विश्व गुरू के रूप में श्री मोदी जी ने वैश्विक कोरोना काल से जूझ रही मानव जाति के अन्दर एक नई आशा की किरण जगाई है तथा हम विश्वास करते है कि अफगानिस्तान में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के कारण उत्पन्न हुई स्थिति से निपटने के लिए भारत के पास सही समय भी है, जबकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता भारत के पास है। ऐसे में सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के रूप में हमारे प्रधानमंत्री जी को विश्व शांति की ओर एक और कदम बढ़ाते हुए विश्व संसद के गठन के लिए विश्व के नेताओं की एक बैठक बुलानी चाहिए।
विश्व के अनेक महान पुरूषों एवं विचारकों व राज नेताओं के द्वारा यह दोहराया जा चुका है कि विश्व संसद ही विश्वव्यापी समस्याओं का समाधान आसानी से कर सकती है। मुझे पूरा विश्वास है कि विश्व के लगभग दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों तथा आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के प्रयास में सारा विश्व समुदाय विश्व एकता के प्रबल समर्थक भारत के साथ खड़ा होगा। विश्व संसद के गठन से देशों के बीच होने वाले युद्धों तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की समाप्ति हो जायेगी। जिसके फलस्वरूप में एक नई वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) का गठन समय रहते होगा। साथ ही उसके पश्चात मानव सभ्यता की गुफाओं से शुरू हुई यात्रा का अन्तिम लक्ष्य सारी धरती पर वसुधैव कुटुम्बकम् के अन्तर्गत आध्यात्मिक सभ्यता की स्थापना से पूरा होगा। - वसुधैव कुटुम्बकम् - जय जगत -
www.palworldtimes.com
Leave a comment
महत्वपूर्ण सूचना -
भारत सरकार की नई आईटी पॉलिसी के तहत किसी भी विषय/ व्यक्ति विशेष, समुदाय, धर्म तथा देश के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी दंडनीय अपराध है। इस प्रकार की टिप्पणी पर कानूनी कार्रवाई (सजा या अर्थदंड अथवा दोनों) का प्रावधान है। अत: इस फोरम में भेजे गए किसी भी टिप्पणी की जिम्मेदारी पूर्णत: लेखक की होगी।