मातोश्री अहिल्या बाई होल्कर जयन्ती द्वारा सर्व-धर्म समभाव तथा  पर्यावरण जागरूकता का संदेश दिया 

भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में है
विश्व की समस्याओं का समाधान
लखनऊ 31 मई। मातोश्री अहिल्या बाई होल्कर जयन्ती के अवसर पर 31 मई 2021 को वरिष्ठ समाजसेवी प्रदीपजी पाल, श्रीमती उमाजी पाल एवं विश्व पाल ने मातोश्री अहिल्या बाई होल्कर तथा सभी धर्मों के महापुरूषों के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित करके सर्व-धर्म समभाव का संदेश दिया। इस पुनीत अवसर पर आपने पौधारोपण करके पर्यावरण जागरूकता का संदेश सभी देशवासियों को दिया। आप सभी परिजन ममतामयी एवं त्यागमयी मातोश्री के पारिवारिक एकता तथा सामाजिक एकता के विचारों द्वारा भारतीय संस्कृति के आदर्श वसुधैव कुटुम्बकम् के विचार को साकार करने के लिए संकल्पित है। भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में विश्व की समस्याओं का समाधान निहित है। 
    विश्व एकता के प्रबल समर्थक प्रदीपजी पाल का मानना है कि भारत सांस्कृतिक विविधता के कारण एक लघु विश्व का स्वरूप धारण किये हुए हैं। भारत की सांस्कृतिक विविधता ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का सन्देश देती है अर्थात सारी वसुधा एक विश्व परिवार है। भारत की महान नारी लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर ने लोक कल्याण की भावना से होलकर साम्राज्य का संचालन हृदय की विशालता, असीम उदारता तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया। देश-विदेश में इस महान नारी की जयन्ती प्रतिवर्ष बड़े ही उल्लासपूर्ण तथा प्रेरणादायी वातावरण में मनायी जाती है। इस महान नारी की जयन्ती पर हमें उन्हीं की तरह अपने हृदय को विशाल करके उदारतापूर्वक सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने का संकल्प लेना चाहिए। 
    वह भारत की ऐसी प्रथम नारी शासिका थी जिन्होंने अपनी प्रजा को अपनी संतानों की तरह लोकमाता के रूप में संरक्षण दिया। साथ ही अत्यन्त ही लोक कल्याणकारी कानून बनाये जिसमें सभी का हित सुरक्षित था। पड़ोसी राजाओं के साथ उन्होेंने मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किये। वे युद्ध के पक्ष में कभी भी नहीं रही, वरन् वे कानून आधारित न्यायपूर्ण राज संचालन पर विश्वास करती थी। आज भी महारानी के सम्बोधन की बजाय वह देश में लोकमाता या देवी के रूप में सबके हृदय में श्रद्धापूर्वक वास करती हैं। उन्होंने एक महारानी होते हुए भी एक सादगीपूर्ण, शुद्ध, दयालु तथा ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित हृदय जीवन पर्यन्त धारण किये रहने की मिसाल प्रस्तुत की। 
    वसुधैव कुटुम्बकम् भारतीय संस्कृति का आदर्श तथा सर्वमान्य विचारधारा है। जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। चारों वेदों का एक लाइन में सार है - उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।। उदार चरित्र वाले लोगों के लिए यह सम्पूर्ण धरती ही परिवार है। यह वाक्य विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक तथा युवा भारत की संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है। भारतीय संविधान में निहित वसुधैव कुटुम्बकम् के विचार को सारे संसार में फैलाना है। 
    अब आगे भारत के प्रत्येक नागरिक को वसुधैव कुटुम्बकम पर आधारित वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) का गठन करने का लक्ष्य बनाना चाहिए। वर्तमान में विश्व का संचालन पांच वीटो पाॅवर सम्पन्न शक्तिशाली देश अपनी मर्जी से कर रहे हैं। हमें अपनी धरती माता को कोरोना महामारी से मुक्त, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, वीटो पाॅवर से मुक्त, परमाणु शस्त्रों की होड़ से मुक्त तथा युद्धों से मुक्त बनाने का संकल्प भी हमें आज के महान दिवस पर लेना है। ‘ग्लोबल विलेज’ के रूप में विकसित 21वीं सदी के विश्व समाज में भी अहिल्या बाई के लोक कल्याणी विचार आज भी पूरी तरह सारगर्भित तथा युगानुकूल हैं। 

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