पानीपत का तीसरा युद्ध          14 जनवरी 1761

धनगर सीखेगा, तभी तो जीतेगा|
धनगर जीतेगा तभी तो विश्व विजेता बनेगा||
धनगर करेगा विश्व पर राज, समूचे विश्व से एक लड़ाऊं, तब मैं धनगर वीर कहलाऊं||
???? पानीपत का तीसरा युद्ध ????
         14 जनवरी 1761
पानीपत का युद्ध मराठो और काबुल के अहमदशाह अब्दाली के बीच  आज से 262 वर्ष पूर्व हुआ था। यह युद्ध मात्र सत्ता को लेकर नहीं बल्कि एक विदेशी हमलावर के भारत पर बढ़ते कदम को रोकने के लिए हुआ था। यहां की किसी भी देशी रियासत के राजा ने नहीं सोचा की विदेशी अब्दाली को रोका जाए। भारत की अस्मिता की रक्षा के लिए केवल वीर मराठो ने अब्दाली को ललकारा और एक बार को दरिया ए अटक के उस पार धनगर मराठो ने हिन्दुस्तान के शरहदो के उस पार तक उसे मार कर खदेड़ दिया था।परंतु अपने निजी स्वार्थ के वशीभूत  अंधे होकर यहां के राजाओ मे जयपुर के माधव सिंह , जोधपुर के विजयसिंह और रुहेले,बंगश पठानों में नजीबाबाद के नजीब खा रुहेला के अतिरिक्त बंगंश डूंडी खान रहमत खान ,अवध का नवाब शुजाउद्दौला ने देश में  अहमद शाह अब्दाली को बुलाया और साथ दिया।
         अब्दाली काबुल से चला और मराठे भी अपने दलबल तथा महान सेनापतियो सदाशिव राव भाऊ विश्वाश राव मल्हार राव होलकर महादजी सिंधिया आदि ने उसके विरुद्ध प्रयाण किया।
      इस्लाम धर्म के नाम पर सारे मुस्लिम सुल्तान नवाब अब्दाली से मिल गए। किन्तु हिन्दू धर्म के नाम पर कोई भी हिन्दू राजा मराठो के साथ ना आया। केवल भरतपुर का राजा सूरजमल जाट मल्हार राव होलकर के प्रयास से आया। परंतु जल्दी ही नादान भाऊ के घमंडी अहंकारी स्वभाव के कारण वह भी रूठ कर चला गया। युद्ध के विषय मे मंत्रणा के दौरान भाऊ ने सूरजमल को एक जाट गंवार और मल्हार राव होलकर को  धनगर चरवाहा कहकर ताना मारा। साथ ही उनकी राय की अवेहलना की। मल्हारराव होलकर ने राय दी थी की युद्ध मे औरतो ,बच्चों का क्या काम । यह युद्ध है कोई तीर्थ यात्रा नहीं।इन्हें मथुरा के उस पार पहुचा दिया जाए और अब्दाली से छापामार प्रणाली से युद्ध किया जाएं। भाऊ ने होलकर की नेक सलाह नहीं मानी और उसी के कारण मराठे पानीपत मे फंस गए।
      शह मात के खेल में  अब्दाली को कई मोर्चो पर मराठो ने पराजित किया। दिल्ली जीती। फिर कुंजपुरा सरहिंद जीता। पानीपत में मराठे और पठान आमने सामने पहुँच गए। मराठो ने अब्दाली का काबुल जाने का रास्ता रोक दिया तो अब्दाली ने मराठो का दक्षिण का रास्ता।एक माह तक दोनो आमने सामने खड़े रहे।
       यहां एक बात का उल्लेख करना जरूरी है।मराठो की भूखो मरने की नौबत आ गई। दूसरी ओर अनाज पठानों के पास भी नहीं था। परंतु वे अपने घोड़ो बैलो आदि को मार कर खा जाया करते थे। भाऊ को मल्हार राव होलकर की सलाह नहीं मांनने का पश्चाताप हो रहा था । उसने होलकर महाराज से कहा। मैंने आपकी नेक सलाह को नहीं माना और अब हम युद्ध क्षेत्र मे फंस गए हैं। आपसे प्रार्थना है की युद्ध मे यदि परिस्थिति हमारे विरुद्ध हो तो आप मराठो की पत्नियो को यहां से सुरक्षित निकाल कर ले जाना। यह हमारे ऊपर आपका बड़ा उपकार होगा। होलकर महराज ने कहा तो क्या मै युद्ध में नहीं लडूंगा | इससे तो मुझ पर  कलंक लग जाएगा | भाऊ ने कहा - नहीं  मैं बाद में बताऊंगा कि मेरे कहने से औरतो को सुरक्षित निकालने  का आदेश मैंने दिया था|
          होलकर महाराज ने अपने पांच सौ धनगरों को इस कार्य के लिए तैनात किया।वे ऐसे वीर योद्धा थे जो विकट से विकट परिस्थिति मे भी निकल जाने की चतुराई रखते थे। (आज के कमांडो सैनिक )|
         अंत 14 जनवरी 1761 को पानीपत का भयानक युद्ध हुआ।मराठो ने वीरता  भयानक युद्ध कर  पठानों के छक्के छुड़ा दिए और पठान अपने मोर्चे छोड़कर भागने लगे| अब्दाली उनको रोक रहा था। उसी समय एक घटना घटित हो गई।कुछ दिन पूर्व अब्दाली से नाराज़ कुछ पठानों को भाऊ ने अपनी सेना मे रख लिया था और पहचान के लिए उनके सिरो पर गेरुए रंग की पट्टियां बांध रखी थी।उन्हें मराठा सैनिको के पीछे रखा हुआ था।अचानक उन्होंने गेरुए रंग की पट्टियाँ उतार कर फेक दी और पीछे से मराठो पर हमला कर दिया।जो मराठे वीरता से लड रहे थे पीछे पठानों को देखकर अचंभित रह गए और  हड़बड़ी मे उन्हें कुछ समझ नहीं आया। उसी दैरान एक गोली विश्वासराव को आ लगी। यह देख भाऊ  पठानों की ओर अकेला ही जा पहुंचा और मारा गया।उसके मरते ही मराठो मे भगदड़ मच गई।देखते देखते ही मिलती विजय पराजय में बदल गई। 
        उस भगदड़ मे हज़ारो मराठे  व बड़े बड़े सेनापति मारे गए या पकड़े गए । पानीपत की भूमि रक्त से लाल हो गई।करीब एक लाख मराठे मारे गए।  मराठो की वीरता ऐसी की उन्होंने चालीस हज़ार पठानों को मार दिया।
         पराजय की स्थिति मे मल्हार राव होलकर ने पेशवा व मराठा सरदारो की औरतो को युद्ध क्षेत्र से सुरक्षित निकाला। बाकी धनगर मराठे युद्ध में वीरता से लड़ते रहे | उस युद्ध मे होलकर महाराज के साथ धनगर मराठो की सेना के साथ बारह धनगरों के सेनापति भी युद्ध क्षेत्र मे थे। बिठो जी बुले, बाघमारे, बहाड़,कोकरे,बारगल,फणसे,वाघ,लाम्भते,शिंदे,धाईगुड़े,धाइफोड़े आदि थे।टोटल मराठा सेना मे 33 प्रतिशत धनगर थे। अनेक धनगर सेनापति अन्य मराठा सेना मे भी थे।जिनमे मानाजी धायगुड़े,नरसिंह राव चोपड़े,शिवाजी शेलके,रामराव खंडोजी देवकाते,मलकोजी माने,रंगराव सिंगाड़े,विट्ठल राव पांढरे,नारायण राव पांढरे,तुकोजी गाडवे,यमाजी गोफने,चमाजी टकले,केरबा काले,गंगाजी सिंगाड़े,आनदराव माने,धावजी माने इत्यादि थे। उन्होंने पानीपत में धनगरो के स्वाभिमान को कलंकित नहीं होने दिया |
        उस युद्ध मे यदि मराठे जीतते तो भारत का नक्शा ही कुछ और होता। ना पाकिस्तान बनता।ना बंगला देश बनता। ना ही हमे आज आंतकवाद से जूझना पड़ता।
             धन्य है वे वीर मराठे, जिन्होंने देश धर्म के लिए अपना सर्वस्य निछावर कर दिया  दूसरी ओर मराठो की हार का समाचार जब जयपुर के दरबार में पहुचा तो मिठाइयां बाटी गई और जश्न मनाया गया। यह है भारत का दुर्भाग्य ।
मधुसूदन राव होलकर, इतिहासकार
होलकर राजवंश 9650126820

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