शिक्षा द्वारा विश्व शांति ही मेरे जीवन का उद्देश्यः डॉ.जगदीश गाँधी

10 नवम्बर - डा. जगदीश गांधी के 88वें जन्म दिन पर विशेष

 (जीवन परिचय)

परिचय: एक ही शहर में विद्यालय के 21 कैम्पस, 62 हजार बच्चे और साल-दर-साल आईसीएसई और आईएससी मेरिट सूची में दबदबा बनाने रखने के साथ ही प्रत्येक वर्ष कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपना झण्डा गाड़ने वाले लखनऊ के विश्वविख्यात सिटी मोन्टेसरी स्कूल के संस्थापक डॉ जगदीश गाँधी ने एक साक्षात्कार में कहा कि वे अपने जीवन की अंतिम सांस तक शिक्षा के माध्यम से विश्व शांति के लिए प्रयास करते रहेंगे। जगदीश गांधी पर नेल्सन मंडेला के इन विचारों का भी अत्यधिक प्रभाव पड़ा कि ‘‘शिक्षा ही वह शक्तिशाली हथियार है, जिसके माध्यम से दुनिया में सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है।’’  

                गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में एक ही शहर में सबसे अधिक बच्चों की संख्या वाले विद्यालय के रूप में दर्ज, वर्ष 2002 के यूनेस्को प्राइज फाॅर पीस एजुकेशन अवार्ड से सम्मानित एवं वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकृत एनजीओ के रूप में सबंद्ध सिटी मोन्टेसरी स्कूल के संस्थापक-प्रबन्धक डॉ. जगदीश गाँधी आज भी 87 वर्ष की उम्र में पूरी तन्मयता के साथ बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाने के लिए प्रयासरत् हैं। डाॅ. गांधी का मानना है कि मनुष्य एक भौतिक प्राणी होने के साथ ही सामाजिक एवं आध्यात्मिक प्राणी भी हैं, ऐसे में प्रत्येक बच्चे को भौतिक शिक्षा के साथ ही सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा भी देकर उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करके उन्हें समाज के लिए एक उपयोगी नागरिक बनाना चाहिए।         

महात्मा गाँधी का उनके जीवन पर प्रभावः

                जगदीश 11 साल के जब बालक थे, उस समय वर्ष 1948 में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई, जिससे वह विचलित हो गए। इससे बालक जगदीश की महात्मा गांधी से मिलने का सपना चकनाचूर हो गया। इसके बाद बालक जगदीश ने दुनिया में शांति और एकता के लिए काम करना ही अपना जीवन का लक्ष्य बना लिया और इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने पिता की सहमति से अपना नाम जगदीश अग्रवाल से बदल कर जगदीश गांधी कर लिया। जगदीश गांधी हमेशा से ही महात्मा गांधी के इन विचारों से अत्यधिक प्रभावित रहे हैं कि ‘’अगर हमें इस दुनिया में वास्तविक शांति लानी है, और अगर हमें युद्ध के खिलाफ वास्तविक युद्ध करना है, तो हमें इसकी शुरूआत बच्चों के साथ करनी होगी।’’

जगदीश गांधी और उनका मिशन:

                आज से 64 साल पहल वर्ष 1959 में जगदीश गांधी ने अपनी पत्नी भारती गांधी के साथ मिलकर अपने किराए के आवास में 300 रूपये की उधार पूंजी के साथ सिटी मान्टेसरी स्कूल की स्थापना की थी। उनका उद्देश्य केवल पढ़े-लिखें युवाओं की फौज तैयार करना नहीं बल्कि परिवार, समाज, देश और विश्व के लिए उपयोगी नागरिक तैयार करना था, जो भौतिक ज्ञान से परिपूर्ण होने के साथ ही साथ मानवता (शांति, एकता और भाईचारे) के गुणों से सम्पन्न होंगे और जो समाज में परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे। उन्होंने यह महसूस किया कि शिक्षा ही वह एकमात्र सशक्त माध्यम हैं, जिसके माध्यम से बच्चों के मन-मस्तिष्क को सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए तैयार किया जा सकता है। 

साधारण बचपन: 

                जगदीश का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद के ग्राम बरसौली में एक गरीब खेतिहर किसान परिवार में 10 नवम्बर 1936 को हुआ। उनकी माता स्व. श्रीमती बासमती देवी एक धर्म परायण महिला थीं। उनके पिता स्व0 श्री फूलचन्द्र अग्रवाल जी गाँव के लेखपाल थे। प्रारम्भिक अवस्था में जगदीश गाँधी को समाज सेवा की सर्वप्रथम प्रेरणा उनके स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी चाचा श्री प्रभु दयाल जी से मिली थी। वह महात्मा गाँधी के परम अनुयायी थे। स्वतंत्रता आन्दोलन में उन्होंने अनेक बार जेल यात्रायें की। उन दिनों डाॅ. गाँधी अन्य बच्चों को लेकर आजादी के नारे लगाते हुए और आजादी के गीत गाते हुए अपने गाँव में प्रभात फेरियाँ निकाला करते थे।

पढाई के साथ समाज सेवा भी:

                जनवरी 1952 में अलीगढ़ में ‘यू0पी0 स्वीपर यूनियन’ के आह्वान पर लगातार 24 दिनों तक चली लम्बी हड़ताल में बालक जगदीश ने अलीगढ़ के तत्कालीन जिलाधिकारी श्री के0सी0 मित्तल से मिलकर उनकी स्वीकृति से ‘समाज सेवा दल’ के 50 छात्र सदस्यों द्वारा चलाये गये 10 दिनों के सफाई अभियान में 90 ट्रक मैला व गंदगी तथा कूड़ा-करकट निकालकर अलीगढ़ शहर की सड़कों को साफ-सुथरा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

अलीगढ़ से लखनऊ का सफर:

                उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जगदीश को बनारस विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय में से किसी एक को चुनने का निर्णय लेना था। जगदीश गांधी बताते हैं कि जब वे अलीगढ रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का टिकट लेने पहंुचे तो टिकट बाबू ने जब उनसे पूछा कि कहां का टिकट चाहिए तो उन्होंने कहा कि बनारस या लखनऊ में से किसी का भी टिकट दे दीजिये। इस पर टिकट बाबू ने उन्हें डांट लगाई। वह चाहते थे कि विश्वविद्यालय शहर के पास हो ताकि वह वहां बच्चों की ट्यूशन करके अपनी पढ़ाई तथा रहने का खर्चा निकाल सके। अतः उन्हें जब ज्ञात हुआ कि लखनऊ विश्वविद्यालय शहर से लगा हुआ है तब उन्होंने लखनऊ आने का निर्णय लिया। इसके बाद उन्होेंने लखनऊ का टिकट लिया और वे अपने सिर पर एक लोहे का बाक्स रखकर लखनऊ आने वाली ट्रेन पर बैठ गये।

लखनऊ विश्विद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष बने:

                डाॅ गाँधी ने जुलाई 1955 में लखनऊ विश्वविद्यालय में बी0काम0 में प्रवेश लिया और अर्थाभाव के कारण लखनऊ विश्वविद्यालय के समीप ही गोमती नदी के किनारे बने एक मन्दिर में शरण ली। पेट की भूख को शांत करने के लिए उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया। इसके बदले में वे बच्चों से रोटी लिया करते थे। इसके साथ ही उन्होंने अखबार बेचकर भी अपनी पढ़ाई एवं खाने-पीने की व्यवस्था की। वर्ष 1957 के लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में वे ‘उपाध्यक्ष’ व वर्ष 1958 में एम0काॅम0 द्वितीय वर्ष के छात्र रहते हुए भारी बहुमत से लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के ‘अध्यक्ष’ चुने गये। डाॅ. गाँधी के व्यक्तिगत अनुरोध पर छात्र संघ के भवन के उद्घाटन समारोह के अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे।

‘शिक्षा द्वारा विश्व शांति’ के सपने को सच करने के लिए 5 बच्चों एवं उधार के 300 रूपये से डाली सिटी मोन्टेसरी स्कूल की नींवः- :

                वर्ष 1959 में 5 बच्चों से शुरू हुए इस विद्यालय में आज लखनऊ शहर में स्थित 21 शाखाओं में 62,000 से अधिक छात्र-छात्रायें अध्ययनरत् हैं। महात्मा गाँधी के सपनों को पूरा करने के उद्देश्य से ही सिटी मोन्टेसरी स्कूल द्वारा अपनी स्थापना के समय से ही ‘जय जगत्’ को ध्येय वाक्य के रूप में अपनाया गया है। जिस समय दुनिया के अन्य स्कूल अपने बच्चों को केवल भौतिक शिक्षा (भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान व गणित आदि जैसी विषयों की शिक्षा) देने पर अपना ध्यान केन्द्रित किये हुए थे, उस समय डाॅ. जगदीश गांधी दुनिया में बदलाव के लिए बच्चों को भौतिक शिक्षा के साथ ही सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा देकर वैश्विक मानसिकता वाले विश्व नागरिक तैयार कर रहे थे, जिनके माध्यम से ही विश्व में स्थायी शांति की स्थापना होगी।    

एक सफल राजनीति कैरियर:

                डाॅ. गाँधी वर्ष 1969 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद की सिकंदराराऊ सीट से विधायक चुने गये। उस समय इस चुनाव में पूरे उत्तर प्रदेश से कुल 11 निर्दलीय विधायकों द्वारा गठित ‘उत्तर प्रदेश प्रगतिशील निर्दलीय विधायक दल’ ने जगदीश गाँधी को इस दल का अध्यक्ष चुना था। राष्ट्रपति डा0 जाकिर हुसैन की मृत्यु के कारण इसी वर्ष हुए राष्ट्रपति के चुनाव में डाॅ गांधी ने तत्कालीन उप राष्ट्रपति श्री वी0वी0 गिरी को स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में राष्ट्रपति के चुनाव में खड़ा कराया और आपने उनके चुनाव अभियान के उत्तर प्रदेश के इंचार्ज का दायित्व सफलतापूर्वक संभाला। आपकी निष्ठा व लगन के कारण श्री वी0वी0 गिरी जी राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित हुए।

लंदन में ‘शिक्षा द्वारा विश्व शान्ति’ विषय पर ‘इण्टरनेशनल यूथ कान्फ्रेन्स’ का आयोजनः-

                डाॅ. गाँधी को उत्तर प्रदेश सरकार ने विधान सभा सदस्य के रूप में इंग्लैण्ड की जनतान्त्रिक व्यवस्था का अध्ययन करने के लिए 1972 में लन्दन पार्लियामेन्ट भेजा। इसके पश्चात् 1974 में पुनः एक शैक्षिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए डाॅ. गाँधी इंग्लैण्ड गये। इस अवधि में डाॅ. गाँधी ने भारतीय मूल के निवासियों के सहयोग से ‘इंडिया इण्टरनेशनल क्लब’ की लंदन में स्थापना की। इसके बाद इस क्लब के तत्वावधान में डाॅ. गाँधी ने रूलिंग लेबर पार्टी के सक्रिय सहयोग से 17, 18 व 19 दिसम्बर, 1974 को ईलिंग टाउनहाल के प्रसिद्ध विक्टोरिया हाल, लन्दन में ‘शिक्षा द्वारा विश्व शान्ति’ विषय पर तीन दिवसीय द्वितीय ‘इण्टरनेशनल यूथ कान्फ्रेन्स’ सफलतापूर्वक आयोजित की। लंदन में आयोजित इस सम्मेलन में अधिकतर इंग्लैण्ड में निवास करने वाले 47 देशों के युवा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। ये प्रतिनिधि विभिन्न दूतावास, उच्च आयोग, विश्वविद्यालय व विश्व शान्ति के लिए कार्य कर रही संस्थाओं तथा अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षिक संस्थाओं से सम्बन्धित थे।  

मानव मात्र की सेवा के संकल्प के साथ अपनाया ‘बहाई धर्म’ः-

                लंदन के इस सम्मेलन मंे कुछ बहाई युवकों ने भी हिस्सा लिया। इस सम्मेलन में दिये गये कुछ बहाई युवकों के सारगर्भित भाषणों का डाॅ. गाँधी के हृदय पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह ने कहा है ”पृथ्वी एक देश है और मानव मात्र इसके नागरिक है।“ बहाईयों का विश्वास है कि केवल प्रत्येक मनुष्य की आध्यात्मिक चेतना को जगाकर ही सारे संसार में ‘विश्व एकता’, ‘विश्व शान्ति’ तथा ‘विश्व बन्धुत्व’ की स्थापना की जा सकती है। डाॅ. गाँधी पहले से ही विश्व एकता एवं विश्व शान्ति के प्रबल समर्थक थे। इसलिए डाॅ. गाँधी ने लन्दन में ही बहाई धर्म स्वीकार कर लिया।

राजनीति से सन्यास:-

                बहाई धर्म अपनाने से पूर्व डाॅ. गाँधी राजनीति में थे और उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद के सिकन्दराराऊ क्षेत्र से विधायक थे। सन् 1974 में बहाई धर्म स्वीकार करने के बाद भी डाॅ. गाँधी पुनः 1977 में विधान सभा के उप चुनाव में विधायक का चुनाव लड़ने के लिए लालायित हो गये थे। उस समय उन्हें उनकी 14 वर्ष की बेटी गीता ने यह स्मरण दिलाया कि बहाई धर्म के अनुयायी का जीवन अपनी आत्मा के विकास, मानव मात्र की सेवा तथा हृदयों की एकता के लिए होता है। बहाई धर्म में राजनीति में भाग लेने की मनाही भी है। बेटी गीता द्वारा स्मरण कराई गई बहाई शिक्षाओं के परिणामस्वरूप डाॅ. गाँधी ने चुनाव लड़ने का फैसला छोड़ दिया। अपनी आत्मा की रक्षा में सर्वाधिक योगदान देने के कारण डाॅ. गाँधी अपनी बेटी गीता को अपनी ‘आध्यात्मिक माँ’ मानते हैं।

राजनीति से सदैव के लिए अलग होने के बाद डाॅ. गाँधी ने अपने जीवन को शिक्षा के माध्यम से सारे विश्व में शांति स्थापित करने के लिए समर्पित कर दियाः-

                राजनीति से अलग होने के पश्चात डाॅ. गाँधी का चिन्तन पूरी तरह से सी.एम.एस. परिवार की ओर केन्द्रित हो गया। आज सी.एम.एस. शिक्षा जगत में निरन्तर नये-नये कीर्तिमान स्थापित करता जा रहा है। सी.एम.एस. डाॅ. गाँधी का हृदय है। डाॅ. गाँधी के जीवन की हर एक सांस प्रत्येक बालक को अच्छा तथा चुस्त बनाकर उसे टोटल क्वालिटी पर्सन के रूप में विकसित करने के लिए है। डाॅ. गाँधी की दिनचर्या प्रातः 5.00 बजे योग से शुरू होकर रात्रि 11.00 बजे तक शिक्षा के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहती है। उनके चिन्तन में विश्व के दो अरब पचास करोड़ बच्चों के सुरक्षित भविष्य की चिन्ता बसी है। आज शिक्षा के माध्यम से सारे विश्व में शांति स्थापित करके सम्पूर्ण संसार के बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना ही उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य तथा उनकी प्रभु-प्रार्थना बन गयी है।

शिक्षा के माध्यम से विश्व में स्थायी शांति की स्थापना:

                डाॅ. गाँधी का मानना है कि विश्व मंे स्थायी शांति तब तक नहीं आयेगी, जब तक कि विश्व के प्रत्येक मानव मस्तिष्क में शांति रूपी विचार की स्थापना नहीं हो जाती। इसके लिए सिटी मोन्टेसरी स्कूल के सभी 62 हजार से अधिक बच्चे रोज सुबह प्रार्थना सभा में एक ही मंच पर विश्व एकता की प्रार्थना एवं सभी धर्मों की प्रार्थना करते हैं। वास्तव में इसके माध्यम से डाॅ. गांधी प्रत्येक बच्चों के मन-मस्तिष्क में बचपन से ही इन विचारों को डाल रहे हैं कि ईश्वर एक है। सभी धर्मो का स्रोत्र एक ही परमात्मा है तथा सारी मानवजाति एक ही परमात्मा की संतानें हैं। इसके साथ ही डाॅ. गांधी ने विद्यालय की शिक्षा पद्धति में बच्चों की वल्र्ड पार्लियामेंट, आध्यात्मिक शिक्षा सम्मेलन, विश्व एकता मार्च, अहिंसा मार्च, चरित्र निर्माण मार्च, माॅडल यूनाइटेड नेशन्स, अंतर्राष्ट्रीय बाल फिल्म समारोह, विश्व के मुख्य न्यायाधीशों का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, गणतंत्र दिवस पर निकाली जाने वाली झांकी, विश्व एकता सत्संग, आओ दोस्ती करें और अंतर्राष्ट्रीय बाल शिविर जैसे कुछ ऐसे अद्धितीय एवं अनुपम सह शैक्षिक कार्यक्रमों को शामिल किया है,ं जिनके माध्यम से वे प्रत्येक बच्चे के मन-मस्तिष्क में बचपन से ही धार्मिक एकता, मानव मात्र की एकता, वसुधैव कुटुम्बकम् एवं विश्व बंधुत्व रूपी विचारों का बीजारोपण करके उन्हें विश्व नागरिक के रूप में विकसित कर रहे हैं।

जय जगत

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