भावी वर-वधुओं के लिए प्रतिज्ञा

भावी वर-वधुओं के लिए प्रतिज्ञा

1.            विवाह दो शरीरों और आत्माओं का मिलन है। शरीर और आत्मा दोनों ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित रहते हैं। यह मिलन आध्यात्मिक मिलन है जो आजीवन जुड़ा रहता है। वही विवाह सफल होता है जहाँ सांसारिक और आध्यात्मिक बन्धन दोनों का सामंजस्य है।

2.            विवाह दो के बीच नहीं तीन अर्थात वर-वधु तथा परमात्मा के बीच होता है। परमात्मा को साक्षी मानकर वर-वधु विवाह की सारी प्रतिज्ञाऐं करते हैं।

3.            विवाह स्त्री-पुरूष का आत्मिक और हार्दिक मिलन है। मस्तिष्क और हृदय की आपसी स्वीकृति है। स्त्री-पुरूष दोनों का कर्तव्य है कि वे दोनांे एक दूसरे के स्वभाव और चरित्र को समझें। दोनों के आपसी

सम्बन्ध अटूट हों। ईश्वर को साक्षी मानकर एक दूसरे के प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार तथा एक अच्छा जीवन साथी बनने का उनका एकमात्र लक्ष्य होना चाहिये।

4.            वैवाहिक बन्धन नैतिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक हैं। वैवाहिक बन्धन में केवल शारीरिक

बन्धन को महत्व न देकर आध्यात्मिक गुणों के द्वारा ईश्वर की निकटता के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए। तथापि ईश्वर द्वारा निर्मित इस सृष्टि को आगे बढ़ाने में योगदान देना चाहिए।

परमपिता परमात्मा की साक्षी में पति-पत्नी की आपसी सहमति:-

1.            हम एक-दूसरे के साथ अपने व्यक्तित्व को मिलाकर नये जीवन की सृष्टि करते हैं।

2.            पूरे जीवन भर एक-दूसरे के मित्र बनकर रहेंगे और बड़ी से बड़ी कठिनाईयांे एवं विपत्तियों में  एक-दूसरे पूरा-पूरा विश्वास, स्नेह तथा सहयोग देते रहंेगे।

3.            जीवन की गतिविधियों के निर्धारण में एक-दूसरे के परामर्श को महत्व देंगे।

4.            एक-दूसरे की सुख-शांति तथा प्रगति-सुरक्षा की व्यवस्था करने में अपनी शक्ति, प्रतिभा, योग्यता तथा

                साधनों आदि को पूरे मनोयोग एवं ईमानदारी से लगाते रहेंगे।

5.            दोनों अपनी ओर से श्रेष्ठ व्यवहार बनाए रखने का पूरा-पूरा प्रयत्न करेंगे। मतभेदों और भूलों का

                सुधार शांति के साथ करेंगे। किसी के सामने एक-दूसरे को लांछित एवं तिरस्कृत नहीं करेंगे।

6.            दोनों में से किसी के असमर्थ या विमुख हो जाने पर भी अपने सहयोग और कत्र्तव्यपालन में कमी नहीं                         आने देगे।

7.            कत्र्तव्यपालन एवं लोकहित जैसे कार्यो में एक-दूसरे के सहायक बनेंगे।

8.            एक-दूसरे के प्रति पतिव्रत तथा पत्नीव्रत धर्म का पालन करेंगे।

9.            मर्यादा के अनुरूप अपने विचार, दृष्टि एवं आचरण विकसित करेंगे।

                इन्हीं हार्दिक शुभकामनाओं सहित,

भवदीय

प्रदीप कुमार ंिसंह ‘पाल’

लखनऊ मो. 9839423719

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