
अंधविश्वास, पाखण्ड और कुरीतियों से मुक्ति का संदेश देती दिखी प्रबुद्ध रंग कार्यशाला की प्रस्तुतियां
मानवता के साथ वैज्ञानिकता के स्थापत्य पर जोर देती दिखी नाट्य प्रस्तुतियां
प्रयागराज 11 जून, प्रबुद्ध फाउंडेशन, देवपती मेमोरियल ट्रस्ट, डा. अम्बेडकर वेलफेयर एसोसिएशन (दावा) और बाबासाहब शादी डाट काम के संयुक्त तत्वावधान में विगत 20 मई से मम्फोर्डगंज स्थित राष्ट्रीय शिशु विद्यालय में सात से सत्रह आयु वर्ग के बच्चों के सृजनात्मक, कलात्मक और व्यक्तित्व विकास के लिये चलाई गई एक तेईस दिवसीय प्रस्तुतिपरक ग्रीष्मकालीन प्रबुद्ध बाल नाट्य कार्यशाला का समापन दर्जनों नृत्य, नाटक व गायन की प्रस्तुतियो के साथ रविवार को सांस्कृतिक केन्द्र के प्रेक्षागृह में किया गया।
प्रबुद्ध फाउंडेशन के प्रबंधक/सचिव रंगकर्मी रंग निर्देशक आईपी रामबृज के निर्देशन में सबसे पहले सभी प्रतिभागी बच्चों ने बुद्ध वंदना, त्रिशरण, पंचशील और हे बोधिसत्व बाबा परणाम हो हमारा का सामूहिक संगायन कर कार्यशाला का शुभारंभ किया। एक ओर जहां कबीरा कहे ये जग अन्धा, स्वागत स्वगतम स्वगतम, हम भीमराव के बच्चे है, बुद्धं शरणं गच्छामि, गौतम बुध्द हमारे है, तेरी आरती उतारूं रे, काल चक्र के आगे आगे, आदिवासी जंगल रखवाला रे, मुझे दुश्मन के बच्चों को पढ़ाना है जैसी दर्जनों नृत्य नाटिकाओं की प्रस्तुतियो ने दर्शकों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया तो वही दूसरी ओर नागपुर महाराष्ट्र की प्रख्यात बहुजन महिला साहित्यकार डा. सुशीला टाकभौरे द्वारा लिखित नाटक जीवन के रंग, जौनपुर निवासी अरुणांचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल प्रख्यात बहुजन साहित्यकार डा. माता प्रसाद द्वारा लिखा नाटक महादानी राजा बलि तथा मेरठ निवासी प्रख्यात बहुजन साहित्यकार सूरज पाल चौहान द्वारा लिखित कहानी का नाट्य रूपांतरण नाटक परिवर्तन की बात और रंगकर्मी रंगनिर्देशक आईपी रामबृज द्वारा लिखित नाटक- बेटी, सीएमपी डिग्री कालेज हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. दीनानाथ द्वारा लिखित नाटक सास बहू, राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की कविता मा कह एक कहानी, सोसल मीडिया से लिया गया नाटको में नशा मुक्ति, चुनाव, पाखण्ड और अंगुलिमाल तथा एकलव्य जैसे कुल आठ नाट्य प्रस्तुतियों की प्रतिभागी बच्चों के अभिनय को दर्शकों खूब सराहा।
नाटक अंगुलिमाल में तथागत बुद्ध का कथोपकथन कि मृत्यु से कैसा भय, वो तो अक्षुण सत्य है। किसी को मारकर विजय पाना विजय नही पराजय कहलाता है। किसी एक को मारकर दूसरे को विजय दिलाना कहा का न्याय है। अगर मारना है तो उस पाप को मारो, विचार का नाश करो, मनुष्य का मनुष्य के प्रति उसके मन मे व्याप्त घृणा मूल कारण है। प्रत्येक व्यक्ति प्रेम और स्नेह का भूखा है। उसे इतना प्रेम दो कि उसके मन की घृणा स्वतः ही समाप्त हो जाय।
प्रख्यात बहुजन साहित्यकार पूर्व राज्यपाल माताप्रसाद द्वारा लिखित नाटक महादानी राजा बलि में दिखाने का प्रयास किया गया कि हजारों साल पहले की बहुजनो की बौद्ध विरासत या कहे समण संस्कृति का वाहक महादानी राजा बलि की दानवीरता विश्व विख्यात थी, जिसको देवताओं ने छल, कपट से उसका राज्य छीनकर उसका बध कर दिया। बलि कुल रीति सदा चलि आई प्राण जाए पर वचन न जाई को तथाकथित असमानता के पोषको ने बलि के स्थान पर रघु जोड़कर रघुकुल रीति सदा चलि आई कर समण संस्कृति पर लीपापोती कर कैसे आर्य संस्कृति को प्रतिस्थापित कर दिया गया यही दिखाने का प्रयास किया गया है।
नागपुर महाराष्ट्र की प्रख्यात बहुजन महिला साहित्यकार डा. सुशीला टाकभौरे द्वारा लिखित नाटक जीवन के रंग द्वारा समाज मे फैले अंधविश्वास, पाखण्ड और कुरीतियों को समूल नष्टकर वैज्ञानिकता के स्थापत्य पर जोर देती है। अंधविश्वासरूपी मकड़जाल में एकबार फंसा इंसान निरंतर फंसता और दबता ही चला जाता है और उपर उठना उसके लिए धर्म के खिलाफ़ लगने लगता है। इन्ही सब बातों का खंडन करता हुआ नाटक "जीवन के रंग" में दिखाने का प्रयास किया गया है। परिवार की आर्थिक तंगी का बहुत ही मार्मिक चित्रण देखने को मिलता है। नाटक में रामेश्वर जिसे शराब की लत लग जाती है फिर भी बाबा साहब के विचारों से प्रभावित होकर नशे से उबर जाता है और परिवार तथा समाज को आगे बढ़ाने का कार्य करने लगता है।
प्रबुद्ध फाउंडेशन के सचिव रंगकर्मी रंग निर्देशक आईपी रामबृज द्वारा लिखित नाटक बेटी में बेटा शादी होने के पश्चात अपनी जिम्मेदारियों से भागता नजर आता है किन्तु वही बेटी पूरी ईमानदारी से जिम्मेदारियों का निर्वहन करती है।बेटी का किरदार अदा कर रही रिया मौर्या का कथोपकथन कि आज तो बेटी को बचायेंगे। कल गन्दी सोच के लोग दामिनी के तरह बेटी को भी नोच खायेंगे। वहाँ ये बच गये तो दहेज के नाम पर जिंदा जलाये जायेंगे। अगर कोख से बुढ़ापे तक रोना ही रोना था तो क्यों आये हम यहाँ, यहाँ सबको माँ चाहिए, बहन चाहिए, बीबी चाहिए, मगर बेटी किसी को नहीं चाहिए। ओस की बूँद होती है बेटियाँ, माँ बाप को दर्द हो तो रोती हैं बेटियाँ, बेटा सिर्फ एक कुल, लेकिन दो-दो कुलों की लाज होती हैं बेटियाँ, लेकिन किसी को नहीं चाहिए बेटियाँ, क्यों ? क्यों? क्यों नहीं चाहिए बेटियाँ ? आखिर हमारा कुसुर ही क्या है, आखिर हमारा कुसूर ही क्या है, आखिर हमारा कुसूर ही क्या है ? पर लोगों को तालियां बजाने और सोचने पर मजबूर कर दिया।
प्रख्यात बहुजन साहित्यकार सूरजपाल चौहान द्वारा लिखित कहानी 'परिवर्तन की बात' का नाट्य रूपांतरण की प्रस्तुति में रघु ठाकुर की गाय ठंड लगने से मर जाती है। किसना मरी हुई गाय की खाल छीलने व उसे उठाने से मना कर देता है। रघु ठाकुर किसना पर साम दाम दंड भेद जैसी चाल चलकर बहुत प्रताड़ित करता है किंतु किसना व उसके समाज के लोगों ने समाज में परिवर्तन कैसे होगा दृढ़ संकल्पित होकर संकल्प लेते हैं कि वे कुछ अन्य सम्मानजनक काम करके जीवन यापन कर लेगे लेकिन मरी हुई गाय न उठायेगे न उसकी खाल उतारेंगे। किसना के परिवर्तनकारी कदम बाहर निकालने से ही समाज मे बहुत बड़ा परिवर्तन हो रहा है और लोग सम्मानपूर्वक जिन्दगी जी रहे है।
कार्यशाला के बच्चों में रिया मौर्य-बेटी, तनु जायसवाल-राजा प्रसेनजित, राजा बलि, एकलव्य, अन्तरा पटेल-अंगुलिमाल, इन्द्र, द्रोणाचार्य, अम्बिका-नारद,भीम, रीत सिंह-बृहस्पति, युधिष्ठिर, नैना यादव-बुद्ध, सुनैना यादव-अर्जुन, सेनापति, खुशबू-सहदेव, खुशी-गीता, विनोद-सीता, किसना, रतन-रामेश्वर, दरोगा, अनुराग-सूत्रधार, नेता, करन-प्रकाश, रोहित, समेश्वर सिंह, मास्टर, देव-रघु ठाकुर, अजय-ठाकुर हरि प्रसाद, सीतू-पड़ोसन, अंकित-भिक्षु, अनीश-विनोद, रिया-रश्मि, ग्रंथ केसरवानी- ब्राह्मण, प्रेम प्रजापति-मघई, मुखिया, गौरव प्रजापति-शराबी, प्रजा, हर्षित पटेल- छोटुआ, प्रजा, संध्या पटेल-सिद्धार्थ, संजनी-देवदत्त, ऐंजल केसरवानी- दुर्गा, सेनापति का किरदार किया। प्रकाश संतलाल पटेल, म्युजिक हिमांशु जैसवार, बस्त्र सज्जा लता, परिकल्पना व निर्देशन आईपी रामबृज का रहा।
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