
जीवन का स्वरूप सामाजिक विस्तार है और समाज की नींव शिक्षक रहे हैं, धैर्य और संवेदनशीलता समाज का गुण होना चाहिए, और ये किस प्रकार स्वस्थ समाज मंे जन्म लेगा ये
निर्धारण शिक्षक स्वयं अपने आत्मीय मनोयोग से कर सकता है, और ये सहजता शिक्षक को जगत गुरू मैं परिवर्तित करेगी और ये मूल परिवर्तन शिक्षक दिवस से जगत गुरू दिवस मैं परिवर्तित होगा।
जिस प्रकार कोरोना के कई कारणों ने आर्थिक मंदी को जन्म दिया है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था गर्त की ओर अग्रसर है। शिक्षकों के पारिवारिक जीवन का बुनियादी ढांचा कम्पन की अवस्था मैं है, मात्र शिक्षक ही नहीं उनसे निकले विद्यार्थी समाज भी अपने क्षेत्रों मैं समान या
अधिक रूप से प्रभावित हैं, औद्योगिक समूह रोगग्रस्त हो चुका है, मुद्रा निवेश क्षीण हो गया है, परिवहन यातायात और मजदूर भारत के आर्थिक नींव है, उनके पलायान समय को प्रभावित कर गए हैं, जिस कारण शिक्षक समुदाय नाम का वृक्ष भी झुक गया है।
आवश्यकताओं अवसाद और उद्विग्नता बन रहीं है ऐसे समय मैं शिक्षक का पूर्ण चित्त होना अनिवार्य है। शिक्षक प्राकृतिक व्यवस्थाओं और सामाजिक व्यवस्थाओं मैं अंतर नहीं कर पायेगा। इसलिए मैं सदैव लोकतंत्र मैं पारदर्शिता और प्रत्यक्ष नीतियों की प्रक्रिया का प्रशंसक रहा हूँ, और मेरी जिजीविषा है कि सरकारी तंत्र जीवन्त हो और जीवन के विभिन्न आयामों मैं प्रत्येक वर्ग समुदाय और संस्थाओं के लिए उचित केंद और साधन उपलब्ध करवाए।
भारत की बड़ी जनसंख्या वाला युवा अवाक खड़ा है क्योंकि हमने आत्मनिर्भरता के कई आयाम छोड़ दिये थे उन्हें सिलेबस मैं रखा ही नहीं है, इसलिए समाज व्यवस्थाआंे के बिखर जाने से ऊपर की ओर नजर करने लगा है। देखते हैं सरकार इन वक्तव्यों को निवेदन समझती है या विरोध। प्रत्यक्ष नीतियाँ मौद्रिक अशुद्धियों को दूर कर सकती है।
समय का ये चक्का सूक्ष्म गति से चलायमान है, इसे शीघ्र ही बल और ऊर्जा प्राप्त होगी समाज अपनी कक्षा मैं पुनः उस गति स्थापित होगा इस सकारात्मक भाव से आप सभी का आभार प्रकट करता हूँ।
लेखक गोपाल सिंह विष्ट, नोएडा
उत्तर प्रदेश
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