अगर भारत को  सच्चे मायने आत्म निर्भर बनाना है तो

जो मैंने पढ़ा है कि gravity ( गुरुत्वाकर्षण) न्यूटन की देन है , मैं नहीं स्वीकारता हूँ । बहुत कुछ जो भारत को पिछड़ा और विकासशील कहा जाने का कारण है मैं नहीं स्वीकारता । अनुभव के स्तर मैं यह जान गया हूँ कि भारत के पास सुखी और बेहतर जीवन की शैली बहुत पहले से थी । भारत का पतन सिर्फ़ दास मानसिकता और अंतर कलह से हुआ है । जिस देश में फ़क़ीर (volunteer poverty) होना अमीर होने से बड़ी उपलब्धि होती थी वह मार्ग अधिक सम्मांनीय था । बुद्ध और महावीर ने राजा से भिक्षु का पथ चुना था । वह राष्ट्र पिछड़ा कैसे हो सकता है ? ये बात अनुभव के स्तर पे अब तो लगभग हम सब भी समझने लगे हैं कि निरोगी  काया और  खुशहाल मन, धन  से श्रेष्ठ है । यह दर्शन भारत का है । औद्योगिक क्रांति से उपजा भोगवाद और सुविधाभोगी जीवन शैली ने सबको नशेड़ी बना दिया है । कल पर्यावरण दिवस था - सोशल मीडिया धरती को बचाने की चारों तरफ़ गुहार थी ।
पर प्रश्न ये है कि कितने लोगों ने आत्म नियंत्रण द्वारा अपनी आदतों पे अंकुश लगा अपनी भोगवादी प्रवृत्ति को ठीक करने की पहल की ? यही मुख्य मुद्दा है । आत्म नियंत्रित होना ही विकसित मनुष्य होने का प्रतीक है । परंतु ये दौर तो मानव को मशीन की वैशाखियों पे  खड़ा  करने के फ़ैशन का है । 
तपसपूर्ण विद्यार्थी जीवन शैली के गुरुकुल ख़त्म हो गए तो कहाँ से बनेगी मानव निर्माण परम्परा ? अगर भारत को  सच्चे मायने आत्म निर्भर बनाना है तो इस महान राष्ट्र की प्राचीन जाँची परखी परम्पराओं की पुनः स्थापना करनी होगी । परम्परागत ऋषि खेती और गुरुकुल आधारित शिक्षा ही भारत को आने वाले संकटों का समाधान होंगे और हम अक्षय विकास के पथ पर अग्रसर होंगे । जय हिंद । 
सप्रेम 
डॉ. रविकान्त पाठक व समस्त भारत उदय परिवार 
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