
5 जून को हम लोग विश्व पर्यावरण के रूप में मनातेहैं,
मेरा मानना है कि अगर वातावरण को शुद्ध रखना है तो हर रोज विश्व पर्यावरण के रूप में मनाए,
जब भी घर में कोई कार्यक्रम खुशी का माहौल हो तभी पेड़ पौधे लगाकर प्रकृति को हरा-भरा करके हर उत्सव को मनाए,
किसी का भी जन्म उत्सव, एनिवर्सरी ,गृह प्रवेश, और भी ऐसे बहुत सारे मौके आते हैं जिसमें आप दे गिफ्ट में दें और ज्यादा से ज्यादा लगाएं,
प्रकृत्ति के ऐसे तीन अटूट नियम है जिन्हें कभी झुठलाया नहीं जा सकता है।
यह बात इतनी सच है जिसको गहराई से सोचने की जरूरत है।
प्रकृत्ति का पहला नियम वो ये कि यदि खेतों में बीज न डाला जाए तो प्रकृत्ति उसे घास फूस और झाड़ियों से भर देती है। ठीक उसी प्रकार से यदि दिमाग में अच्छे एवं सकारात्मक विचार न भरे जाएं तो बुरे एवं नकारात्मक विचार उसमें अपनी जगह बना लेते हैं।
प्रकृत्ति का दूसरा नियम वो ये कि जिसके पास जो होता है, वो वही दूसरों को बाँटता है। जिसके पास सुख होता है, वो सुख बाँटता है। जिनके पास दुख होता है, वो दुख बाँटता है।
जिसके पास ज्ञान होता है, वो ज्ञान बाँटता है।जिसके पास हास्य होता है, वो हास्य बाँटता है। जिसके पास क्रोध होता है, वो क्रोध बाँटता है। जिसके पास नफरत होती है वो नफरत बाँटता है और जिसके पास भ्रम होता है वो भ्रम फैलाता है।
प्रकृत्ति का तीसरा नियम वो ये कि भोजन न पचने पर रोग बढ़ जाता है। ज्ञान न पचने पर प्रदर्शन बढ़ जाता है। पैसा न पचने पर अनाचार बढ़ जाता है। प्रशंसा न पचने पर अहंकार बढ़ जाता है। सुख न पचने पर पाप बढ़ जाता है। और सम्मान न पचने पर तामस बढ़ जाता है।
प्रकृत्ति अपने आप में एक विश्वविद्यालय ही है। हमें प्रकृत्ति की विभिन्न सीखों को जीवन में उतार कर अपने जीवन को खुशहाल, आनंदमय और श्रेष्ठ बनाने हेतु सतत प्रतिबद्ध होना चाहिए।
श्रीमती विनीता पाल
पर्यावरण विद
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